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डर है चारों आर | उसने खोजा उनकी गुदड़ी में एक फर्स्ट क्लास सोने की चैन वाली घड़ी मिल गई। वह सोचता है यही कारण है डरने का, भय का, जिसक कारण न स्वयं सोते हैं, न दूसरों को सोने देते हैं | जाकर घड़ी कुँए में फेक दी। गुरुजी बोल-जागता है कि साता है? जागते हुये सोना, यहाँ डर है | बोला- गुरुजी डर को तो मैंने कुँए में फेक दिया, चिन्ता की बात नहीं, अब तो आराम से पैर पसार कर साइये | गुरुजी बोले - अरे! क्या किया तूने घड़ी कुँए में फेक दी। हाँ, जिसका आपको डर था, जिसके कारण न आप स्वयं निद्रा लेते थ और न लेन दते थे। उस कुँए में फक दिया। जब अन्त में यह समागम छूटना ही है, ता इसी में भलाई है कि ये परिग्रह हमें छोड़ें, इसस पहले ही हम इन अन्तरंग और बहिरंग परिग्रहों को छोड़कर आत्मा का कल्याण कर लें।
आकिंचन्य धर्म कहता है कि रिक्त हो जाआ | सहित से रहित हो जाआ, युक्त से मुक्त हो जाआ ताकि आत्मा की निर्मलता का विकास हो। जब तक संसार की किसी भी वस्तु से हमारा सम्बन्ध है, तब तक बन्धन है, राग का परिणाम है। जब हम पर से सम्बन्ध बनाते हैं, तब ही हमारे भीतर भिखारीपन आ जाता है । वास्तव में जिसे परिग्रह पाने की जितनी आकांक्षा है, वह उतना ही बड़ा भिखारी है |
एक बार एक सन्त के मन में 50 पैसे दान देने का भाव उत्पन्न हुआ, उसने सोचा 50 पैसे दान दूंगा, पर उसे दूंगा जो सबसे बड़ा भिखारी होगा। काफी भिखारी आये पर दान नहीं दिया। एक दिन सड़क के किनारे सन्त बैठे थे। सामने स सम्राट सेना सहित दूसरे देश पर आक्रमण करने जा रहा था। सन्त ने 50 पैसे का सिक्का उनकी तरफ फेक दिया। सम्राट सहम गया और तुरन्त बोल पड़ा बेवकूफ! इस प्रकार की गुस्ताखी कर रहा है। सम्राट ने देखा यह तो
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