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सन्त है। सम्राट ने प्रश्न किया यह 50 पैसे क्यों फका? सन्त ने उत्तर दिया- मेरा सबसे बड़े भिखारी को दान देने का संकल्प था । मुझे आपसे बड़ा भिखारी कोई नहीं मिला । सम्राट ने कहा- मैं तुम्हें भिखारी दिख रहा हूँ, तुम्हें मेरे यह छत्र, सिंहासन, बग्गी, सेना आदि नहीं दिख रहे हैं । सन्त ने कहा- यदि आपके पास ये सब होते तो फिर आप दूसरे सम्राट पर आक्रमण करने क्यों जाते? क्यों किसी को लूटते, हत्या करते? भिखारी ही दूसरे के द्वार पर जाता है, माँगता है, लूटता है । सम्राट तो आनन्द से विश्राम करता है । आप बाहर से सम्राट हो, पर भीतर से भिखारी हो । बाह्य परिग्रह की प्राप्ति की इच्छा ही मनुष्य को दरिद्र बनाये हुये है ।
संसार में परिग्रह को पाप की जड़ कहा गया है। वही समस्त पापों को कराने वाला है । इस संसार में 9 ग्रह हैं। ये ग्रह बलवान नही हैं, इनसे बचने की चेष्टा भले न करो । परन्तु सबसे बड़ा ग्रह है परिग्रह, इससे बचने का प्रयास करो और सन्त पुरुष बनो । संसार में चार प्रकार के मनुष्य होते हैं। 'जो मेरा है, तेरा भी मेरा है' इस विचारधारा के हैं - वे अधम पुरुष हैं, जैसे कौरव । 'जो मेरा मेरा है, तेरा तेरा है' इस विचारधारा के हैं वे मध्यम पुरुष हैं, जैसे पांडव । 'जो मेरा तेरा है, तेरा भी तेरा है' इस प्रकार की विचारधारा के हैंवे उत्कृष्ट पुरुष, जैसे- श्रीरामचन्द्र जी । पर जो 'न तेरा है न मेरा है, यह सब एक झमेला है - वे सन्त पुरुष हैं, जैसे भगवान महावीर, आकिंचन्य धर्म के धारी । अतः जो अपना नहीं है, जिसे भ्रम से अपना मान रखा है, ऐसे परिग्रह का त्यागकर, आकिंचन्य धर्म को धारण करो ।
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