________________
यह चिड़ीमार भी मुझस दिल्लगी करता है। उसे फाँसी का हुक्म दे दिया | चिड़ीमार को फाँसी के तख्ते पर खड़ा किया, राजा ने कहा कि अन्त में जो कुछ तुझे खाना हो खा ले, जिससे मिलना हा मिल ले । वह बोला-महाराज! मुझे कुछ खाना नहीं है, केवल 5 मिनट के लिये आप अपने पुत्र से मुझे मिला दीजिये। मिला दिया। राजकुमार से चिड़ीमार बोला - भैया मुझे मरने की परवाह नहीं, पर लोग मुझे कहेंगे कि चिड़ीमार झूठा है, झूठ बोलता है। सो आप अधिक न बोलें उतना ही बोल दीजिये जितना आपने बगीचे में बोला था। तो उससे न रहा गया, और सारा किस्सा सुनाया, जो बोले सो फँसे | मैंने पूर्व जन्म में राजा से बोला था सो फँस गया, और फिर चिड़िया ने बगीचे में बोल दिया तो वह फँस गई, यह चिड़ीमार राजा से बोल गया सो वह फँस गया। ____ आत्मा का कार्य ता मात्र जानने-देखने का है। इससे आगे बढ़े और इन पर-पदार्थों में थोड़ा-सा बोले तो हम फँस जायेंगे | हम अपने शान्त स्वभाव से च्युत हो जायेंगे | जगत के सर्व पर-पदार्थों से बाहर बने रहना ही श्रेयस्कर है। अतः जो कुछ अपना लिया है सब छोड़ दो। सिद्धत्व की उपलब्धि इस आकिंचन्य धर्म से ही हो सकती है।
दखो इन इन्द्रियों के दास बने रहने में चाहे इस भव में सुखी हा लें, परन्तु पर भव में दुर्गति स कौन बचायेगा? इससे उत्तम यही है, कि संयम कर लें, आत्म स्थिरता पालें और यदि विचार करक देखा ता ये इन्द्रिय के विषय यहाँ भी सुखदायी नहीं हैं। उनके प्राप्त होने से पहले आकुलता, उनक काल में आकुलता और उनके बाद में आकुलता | और जहाँ आकुलता है, वहाँ सुख-शान्ति कहाँ? एक बार एक राजा न अपने दरबार में एक बहुत बड़ साधु को जंगल से बुलाया। उस साधु
605)