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एक साधु था, सो वह आराम से अपने में मस्त रहता था। एक दिन राजा आया और साधु के पास बैठ गया । साधु बोले राजन् । क्या चाहते हो? राजा बोला - महाराज मेरे कोई लड़का नहीं है सो लड़का चाहता हूँ । साधु ने कहा अच्छा जाओ, लड़का हो जायेगा ।
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राजा चला गया। दो चार माह बाद में साधु को याद आई कि रानी के गर्भ में लड़का आ गया क्या ? इस समय रानी के गर्भ हो सकने का समय भी है। देखूं संसार में कोई जीव मर रहा है क्या? इस समय तो कोई नहीं मर रहा है । तो खुद मरो और चलो रानी के पेट में, नहीं तो वचन झूठ हो जायेगा । सो वह साधु मरा और रानी के गर्भ में पहुँचा। सो जब कोई किसी बात में फँस जाता है तो यह संकल्प कर लेता है कि अब तो ऐसा नहीं करेंगे। उसने वहीं संकल्प कर लिया कि अब नहीं बोलेंगे। थोड़ा-सा बोल दिया तो इतना फँसे | निकला पेट से सात आठ साल का हो गया और बोला नहीं वह । राजा को चिन्ता हुई कि बच्चा तो बोलता ही नहीं है । राजा ने घोषणा करवा दी कि जो मेरे बच्चे को बोलना सिखा देगा उसको बहुत-सा इनाम मिलेगा । एक दिन राजपुत्र बगीचे में जा रहा था । वहाँ देखा कि एक चिड़ीमार जाल बिछाये था, जब कोई चिड़िया नहीं मिली तो जाल लपेटकर जा ही रहा था । इतने में एक पक्षी एक पेड़ की डाली पर बोला, फिर चिड़ीमार ने जाल बिछाया और छिप गया । वह पक्षी आकर उस जाल में फँस गया । इतने में राजपुत्र बोला- जो बोले सो फँसे । अब चिड़ीमार ने सोचा कि इस चिड़िया की क्या कीमत है ? चलें महाराज से कहें कि आपका बच्चा बोलता है। वह गया और बताया । इतनी बात सुनते ही राजा बोला- अच्छा जाओ 10 गाँव तुम्हारे नाम कर दिये । राजपुत्र कुछ देर में आया पर बोला नहीं तो राजा को चिड़ीमार पर क्रोध आ गया बोला, मेरा पुत्र गूंगा है और
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