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दुकानदारी बिगड़ी | गुस्सा तो सब जगह बिगाड़ ही कराता है। जरा आप ठंडे दिमाग से सोचो, क्या इसने कई बार आपका बिगाड़ नहीं किया? क्या आपक बन बनाये काम नहीं बिगाड़े?
क्रोध के बारे में जितना कहा जाये, उतना कम है। आचार्यों ने ता यहाँ तक कहा है कि -
अज्ञान काष्ठ जनितस्त्व व मान वातैः । संधु क्षितः परन्ध वाग्गुरु विस्फुलिंग || हिंसाशिखोऽपि भृगशु स्थित बैरधुमः ।
क्रोधाग्नि रन्द दहति धर्मवनं नराणाम् ।। जो अज्ञान रूपी काष्ठ से उप्पन्न हुई है, अज्ञान रूपी वायु से धौं की गयी है, कर्कश वचन रूपी तिलंगों से सहित है और हिंसायुक्त ज्वाला से युक्त होने पर भी जिससे अत्याधिक बैर रूपी धुआँ उठ रहा है, ऐसी क्रोध-रूपी अग्नि मनुष्य के धर्म-रूपी वन का जला देती
क्षमा आत्मा का स्वभाव है और क्रोध आत्मा का विभाव | क्षमा से शांति, और क्रोध से अशांति के परिणाम मिलत हैं। यदि जीवन को सुखी बनाना चाहते हो तो क्रोध को छोड़कर क्षमाधर्म को धारण करो । क्राध एक प्रकार की अग्नि है | आप हाथ से उठाकर किसी पर अग्नि फकंगे तो वह जले या न जले, आपका हाथ तो अवश्य जलेगा। उसी प्रकार जो क्रोध करता है, उसस सामनेवाले का अहित हो या न हो, क्रोध करनेवाला उस क्रोधाग्नि में अवश्य जलता रहता
है।
क्रोध किसे कहते हैं - भूख-प्यास का जो भुला दता है, उसे शोध कहते हैं।
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