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अनन्त दुःखों को जो दिला देता है, उस निगोद कहते हैं। अग्नि के बिना जो जीव को जला देता है, उसे क्रोध कहते हैं।
क्रोध करने से सदा अहित ही होता है। अतः हमें क्रोध नहीं करना चाहिये । न्यूयार्क निवासी डेविड ज. पोलॉय ने लिखा है कि क्रोध से बचने की कला मैंने एक टैक्सी ड्राइवर से सीखी है। बात लगभग 16 साल पुरानी है | जब व एक टैक्सी से ग्रैंड सेंट्रल स्टेशन पहुँचे, वहाँ पार्किंग की खाली जगह पर जैसे ही ड्राइवर ने टैक्सी पार्क करनी चाही कि तभी एक काली कार तेजी से टैक्सी के सामने आकर खड़ी हो गई। ड्राइवर ने तेजी से ब्रेक लगाया और टैक्सी घिसटते हये कार से कछ इंच की दूरी पर जाकर रुक गई। दूसरी कार के ड्राइवर ने खिड़की से अपना मुँह निकाला और मुड़कर टैक्सी ड्राइवर को गालियाँ देना शुरू कर दी।
टैक्सी ड्राइवर ने मुस्करात हुये उसका अभिवादन किया । डेविड को बड़ा आश्चर्य हुआ | उन्होंने उसस पूछा-आपने एसा क्यों किया? गलती तो उसकी थी। यदि वह कार को ठोक देता तो आपको और हमें अस्पताल पहुँचा सकता था। टैक्सी ड्राइवर न जवाब दिया - ऐसे लोग जमाने भर की परेशानियाँ, निराशा और गुस्सा अपने सिर पर लेकर घूमत हैं | जब उनका गुस्सा सिर से ऊपर हो जाता है, तब वे उसे उड़लने के लिये जगह ढूँढ़ने लगते हैं | और जब आप उनके सामने पड़ गये तो फिर वे आप पर ही सारा गुस्सा उड़ल देत हैं।
जब काई आपसे इस तरह पश आये ता आप इसे अपने दिल पर न लें । आप मुस्कराकर अभिवादन के साथ उसे शुक्रिया कहकर आगे बढ़ जायें | आप खुद को खुश पायेंगे, यह मेरा दावा है। उस ड्राइवर की सीख ने मुझे अनेक बार क्रोध करने से बचाया है। जब
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