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मिलता है, दूसरे गाँव में जायेंगे, तो अधिक आटा मिल जायेगा। चलत समय जंगल में एक साधु मिल गया बोला – किधर जा रहे हो? भीख माँगने, कितने आदमी घर में हैं, पत्नी है, बच्चे हैं, वे सब मुझे इतने प्यार करने वाले हैं कि जिनकी प्रशंसा नहीं की जा सकती है। साधु बोला तीन दिन रहना पड़ेगा | वह वहीं रह गया । सुबह उठकर सोचता है, बच्चे भूखे-प्यासे शाम को ही खत्म हो गये होंगे, पत्नी भी शाम को ही खत्म हो गयी होगी मेरे अभाव में | माला हाथ में लिय फेर रहा है परन्तु अभी चिन्ता है, किसकी? स्त्री की, बच्चों की। तीन दिन पूर हा गये, साधु बाला-जाओ अपने घर चले जाओ | बोला-दीक्षा दे दा महाराज, अपने जैसा बनालो, कुटुम्ब नाश हो गया, घर जाकर क्या करूँगा। इधर साधु न गाँव में चिट्ठी डाल दी थी कि अमुक व्यक्ति का जंगल में शेर ने खा लिया है | और सारे पंच आये समाचार देन शोक का | स्त्री में करुणा होती है | रोई क्या होगा? कैसा होगा? कौन बच्चों को पालेगा? पंचों ने कहा अपन लोगों को इसकी व्यवस्था कर देना चाहिये । एसा सुना तो खुद और जार-जोर से रोने लगी। 40-50 हजार रुपये जोड़ दिय । यह सब हो जाने के उपरान्त तीन दिन में सारा काम समाप्त हो गया। वह आया घर। घर में दीपक जलते हये दखा, तो पसीना निकल आया सोचा काम समाप्त हा गया, किसी ने घर पर अधिकार कर लिया है। फिर भी साचता है अन्दर जाने की। किवाड़ों की दराज में से झांक रहा है, घर में पत्नी चुनरिया ओढ़ आराम से पलंग पर लेटी हुई आराम कर रही है। सांकल बजायी, अन्दर स आवाज आती है – कौन है? मैं हूँ तेरा पति । वह कहती है कि यह नहीं समझना कि खसम मर गया है, मूसल रखा है, अपनी भलाई चाहता है तो लौट जा| बोला-अरी भाग्यवान लक्ष्मी! मैं हूँ तेरा पति | मैं मरा नहीं हूँ, जिसके दर्शन क बिना तुम रह नहीं सकती थीं,
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