________________
भी लड़का है, इस समय जब माथा फोड़ रहा है ।
जहाँ मेरापन आता है, वही है परिग्रह की बात, मूर्च्छा की बात, ममत्व की बात । जहाँ पर मेरापन आता है, वही आसक्ति है, वही है दुर्भावना | जहाँ मेरापन समाप्त हो जाता है, राग-द्वेष मिट जाता है । स्व-स्व और पर-पर रह जाता है, वही है आकिंचन्य धर्म । जिसने भी ऐसा कर लिया, जीवन में उतार लिया वह सुखी बन गया । और जो उतार लेंगे, वे निश्चित रूप से सुखी बन जायेंगे |
यह परिग्रह ही पिशाच है, पाप का बाप है, मन में इसे एक बार स्वीकार तो कर लो । मन स्वीकार कर लेने के बाद छूटना शुरू हो जायेगा। लेकिन हम रुपये-पैस, स्त्री- पुत्र आदि जो परिग्रह के कारण हैं, उन्हें सुख का कारण मानते हैं । जबकि यह स्पष्ट है कि ये सब दुःख के कारण हैं । यह संसार तो स्वार्थ का है, यहाँ तो सब मतलब के साथी हैं, मतलब निकल जाने पर कोई बात भी नहीं पूछता । इसीलिये कहते 'स्वास्थ के सब मीत जगत में ।'
एक गरीब व्यक्ति की पत्नी बोली- पति देव ! जब तक मैं आपके दर्शन नहीं कर लेती, आपके पैर नहीं छू लेती, तब तक चैन नहीं पड़ती। यदि कहीं दुर्भाग्य से ऐसा दिन आ गया कि आपके दर्शन नहीं मिल, तो उस दिन मेरा जीवन मुश्किल है। आदमी भोला होता है, स्त्रियों की बातों में ठगाया जाता है। वह भी भोला था, सोचता है, मेर ऊपर मेरी पत्नी को कितना प्यार है, बाहर से आते ही मेरे पैर धोने को गर्म पानी देती है, जब तक मैं खाना नहीं खा लेता, तब तक वह भी भोजन नहीं करती है, बच्चों को भी मुझ पर कितना प्रेम है, कोई जाँघ पर बैठता है, तो कोई कंधों पर झूलता है । बंध गया बंधन में, था गरीब पड़ गया चक्कर में एक दिन माया । सोचा किसी दूसरे गाँव चलो, अधिक भीख मिल जायेगी। अपने गाँव में चुटकी- चुटकी आटा
601