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नहीं हैं। कारण यह है कि तत्त्वज्ञ पुरुषों ने ममत्व भाव को ही परिग्रह की उत्पत्ति का कारण बतलाया है। परपदार्थों में जो हमने अपनत्व बुद्धि कर रखी है, ममत्व कर रखा है, वह छोड़ दें ता वियोग के समय दुःख नहीं होगा।
जब कोई घटना हमारे पड़ोसी के यहाँ घटती है, तब हम कह देते हैं कि जो होना था सो हो गया। किन्तु जब हमारे ऊपर घटती है, तब नहीं कहते कि जो होना था सो हा गया। परिग्रह को पाप कहकर सुनाना कोई बड़ी बात नहीं, परन्तु अपने जीवन में पालना, अनुभूति करना बड़ी बात है।
एक व्यक्ति स्टेशन पर रुका हुआ था। एक लड़का उसके रुकने के कमरे में घुस गया। उसने उस लड़के से बाहर निकलने के लिये कहा। जब वह नहीं निकला तो लड़के को लात मारकर बाहर निकाल दिया। लड़का बेचारा क्या करता। सर्दी बहुत अधिक थी जिसके कारण वह लड़का खत्म हो गया। सुबह सारी भीड़ इकट्ठी हो गयी। वह भी वहाँ आया, उसने देखा वह लड़का मर गया है। मर जाने दो, अपन ता अपने घर चलें, बहुत समय बाद आया हूँ, मिलना है पत्नी से, बच्चे से, अब तो वह बड़ा हो गया होगा। जब चेकिंग हुई तब बच्चे की जब स निकला उसका फोटो | फोटो देखकर वह सोचता है कि इस बच्चे की जेब में मेरा व मेरी पत्नी का फोटो कैसे? लड़का छोटा था, माँ ने सोचा पिता को पहचानता नहीं, इसलिये यह फोटो देखकर पिता को पहचान लगा। फोटो को अच्छी तरह से देखता है | अरे! यह तो मेरा ही बेटा है | माथा पटक कर रोने लगता है। समझ गये होंगे आप रात्रि में लड़का था कि नहीं। जब फोटो हाथ में लेकर देख रहा है, तब लड़का है कि नहीं। उस समय जब लात मारकर कमरे से बाहर निकाल दिया था तब भी लड़का था, अब
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