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बार जब सेवक लौटकर आये और भर्तृहरि को बताया कि इस घड़े के रसायन को भी उन्होंने गड्ढे में डलवा दिया, तो भर्तृहरि का दिमाग चकरा गया। बोले-अब तो मैं स्वयं साथ में चलता हूँ, अन्तिम रसायन के घड़े को लेकर वह अपने शिष्यों के साथ शुभचन्द्र मुनिराज के पास पहुँचते हैं और विनय पूर्वक नमोस्तु करते हुये बोले कि भाई तुम्हारी दरिद्रता को देखकर के मुझे दया आती है, देखो 12 वर्ष तक तपस्या करके मैंने ये रसायन तैयार किया है, लो इसको पकड़ो। परन्तु शुभचन्द्र मुनिराज ने उस घड़े को लेकर तत्काल ही नीचे गिरा दिया, जिससे उस घड़ में भरा पूरा रसायन मिट्टी में मिल गया। अब तो भर्तृहरि का पारा लाल हो गया, अत्यंत क्रोधित होकर बोले कि मैंने 12 वर्ष में इतनी तपस्या की और तुमने मरी 12 वर्षों की तपस्या को एक दिन में ही मिट्टी में मिला दिया |
तब शुभचन्द्र मुनिराज ने शांत भाव से उन्हें समझाते हुये कहा कि हे भर्तृहरि - अगर तेरे लिये सोना ही चाहिये था, तो तूने राज्य ही क्यों छोड़ा, वहाँ पर क्या कमी थी? तूने 12 वर्ष का समय बर्बाद कर दिया, यह तो परिग्रह है, ये तप नहीं है। ऋद्धि-सिद्धि के लिये तप करना, बाल तप है, अज्ञान तप है । बोले-देखो अगर तेरे लिये सोना ही चाहिये तो देख वो सामने पहाड़ है, वहाँ से जितना - चाहो - उतना सोना ले लो और वहीं पास से एक मुट्ठी मिट्टी को उठाकर पहाड़ पर डाल देते हैं, तत्काल ही सारा -का-सारा पहाड़ सोने का हो जाता है । भर्तृहरि आश्चर्य चकित रह जाते हैं । अरे ! मैंने तो 12 वर्ष तपस्या करक मात्र लोहे का सोना बनाना सीखा है, लेकिन इन्होंने तो केवल मिट्टी से ही सोना बना दिया |
संसार में व्यक्ति पैसा कमाता है, लेकिन पैसा उसके साथ कभी भी जाने वाला नहीं है, थोड़ा-सा धर्म भी यदि आप करते हो तो वो
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