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नमस्कार करके बोले कि महाराज आपकी दरिद्रता को देखकर के आपके भाई का आपके ऊपर दया आ रही है, उन्होंने आपके लिये ये रसायन भजा है, इस रसायन की एक बूंद, आप जिस लोहे पर डाल दोगे, तो वह सारा लाहा तत्काल सोने में परिवर्तित हा जायेगा, इससे आप अपनी दरिद्रता दूर कर लेना।
शुभचन्द्र मुनिराज ने कहा ठीक है, मरा भाई, आखिर है तो मेरा भाई, यहाँ पर एक गड्ढा करो। इस पर सेवकों ने वहाँ पर एक गड्ढा कर दिया। फिर मुनिराज बोले-इस घड़े को इस गड्ढे में डाल दो सेवकों ने उस रसायन से भरे घड़ का गड्ढे में डाल दिया ।
सेवकों ने गड्ढा भी कर दिया, घड़ को गड्ढे में डाल भी दिया, लेकिन सेवक घबड़ा गय और भर्तृहरि क पास पहुँच, बोले-गुरुदेव ऐसा-ऐसा हा गया। भर्तृहरि बाले कोई बात नहीं, जाओ एक घड़ा और ले जाओ, इस दूसरे घड़ को दे आओ। दूसरे घड़े को सेवक मुनिराज के पास ले गय, और पुनः वही बात दोहराई कि आपके भाई ने आपकी दरिद्रता को दूर करने के लिये यह दूसरा घड़ा भिजवाया है। शुभचन्द्र मुनिराज ने कहा कि ठीक है, इसे भी गड्ढे में डाल तो, इस पर सवकों ने फिर स घड़े के रसायन को गड्ढे में डाल दिया और सवक लौट करके पुनः चले गये । ___भर्तृहरि न सवकों से पूछा-क्यों, अब ता ले लिया। सेवक बाल-नहीं, महाराज! दूसरे घड़े के रसायन को भी उन्होंने गड्ढे में डलवा दिया। भर्तृहरि ने सोचा कि भूख और प्यास के कारण से शुभचन्द्र का दिमाग खराब हो गया है, फिर भी काई बात नहीं, एक और रसायन का घड़ा शुभचन्द्र के पास भिजवा दिया। पुनः शुभचन्द्र ने इस तीसरे घड़े के रसायन को भी गड्ढे में डलवा दिया। अबकी
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