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प्रस्थान कर जाऊँगा, और ऐसे राज्य को प्राप्त करूंगा जो शाश्वत होगा, जहाँ पर ऐसे रोग न हों, जहाँ पर कभी किसी प्रकार का कोई दुःख न हो, शाश्वत राज्य को प्राप्त करने की हम कोशिश करेंगे। ऐसा सोचते-सोचते मेरी नींद लग गई और सुबह जब मेरी नींद खुली तो दखा कि मेरी आँखों में अब काई दर्द नहीं था, पूर्व की भांति सब सामान्य लग रहा था। तब मैंने परिवार के सदस्यों को अपना निर्णय सुनाते हुये कहा कि अब मैं वन में जा रहा हूँ, "अप्पा शरणं गच्छामि" | इस संसार में मेरा अब काई नहीं है, मैं आत्मा की शरण में जा रहा हूँ | मैंने संसार का देख लिया है, संसार में जीव अकेला ही आता है, किसी प्रकार का सुख-दुःख व्यक्ति क लिये होता है, तो वो अकेला ही भोगता है, तुम लोगों ने बहुत कोशिश की हमारे दुःख को दूर करने की, लेकिन तुम किंचित मात्र भी हमारे दुःख में सहयोगी नहीं बन पाये । इसलिये अब मैंने विचार किया है कि हमें संसार के दुःखों को न उठाना पड़े, इस कारण से हम अब वन के लिये प्रस्थान करेंगे और वहाँ पर जाकर आत्म कल्याण करेंगे।
आप अकेला अवतरे, मरे अकला होय ।
यों कबहूँ इस जीव को, साथी सगा न कोय || इस संसार में जीव अकेला ही जन्म लेता है और अकेला ही मर जाता है | मरने के बाद वो अकेला ही जाता है, कोई भी सगे-संबंधी उसके साथ नहीं जाते हैं, ये ता मात्र संयोग है, इसलिय अब मुझे वन में जाना है-"अप्पा शरणं गच्छामि ।” मेरी आत्मा ही मेरी शरण है, इसके अलावा मुझे और काई शरण नहीं द सकता है | इस प्रकार हे राजन् ! मैं वन में पहुँच गया और यहाँ आकर दिगम्बर भेष को
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