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न हो तो मेरे साथ चलो, मैं तुम्हारे लिये एक राज्य दे दूंगा।
महाराज ने राजा की बात सुनी और कहा-हाँ, राजन्! तुम बिल्कुल ठीक कह रह हो, इस संसार में हमारा कोई नाथ नहीं है, मैं अनाथ हूँ | इस पर राजा बोले-मेरे होते हुए तुम अनाथ नहीं हो सकते | मैं यहाँ का राजा हूँ, मैं चक्रवर्ती हूँ, चलो तुम्हारे लिये 6-7 गाँव दे दूंगा, इसके अलावा और बोलो तुम्हें क्या चाहिये, मरे होते हुय तुम अनाथ नहीं हो सकते ।
महाराज बोले-राजन्! तुम सत्य कह रहे हो, लेकिन मैं जिस बात को कह रहा हूँ, वह बात तुम नहीं समझ पा रहे हो । राजा ने कहा कि बताओ तुम किस कारण से जंगल में बैठे हुये हो?
महाराज ने कहा-राजन्! तुम्हारे राज्य में ही मैं एक सानंद सम्पन्न सेठ के यहाँ जन्मा था | धीरे-धीरे मैं बड़ा हुआ, युवा होने पर मेरी शादी हो गई और फिर मरे बच्चे हुये । एक दिन राजन्! ऐसा हुआ कि मुझे अत्यंत भीषण रोग ने घेर लिया, मेरी आँखों में बहुत जोर से दर्द हुआ, बहुत वैद्य, हकीम बुलाये लेकिन फिर भी मरा दर्द कम नहीं हुआ। जब मैं बहुत परेशान हो गया, असहनीय वेदना से ग्रसित हो गया तब मैंने विचार किया कि मेरे कारण से सारे-के-सारे लोग परेशान हो रहे हैं, पर मेरे लिये जो दुःख हो रहा है, इसको बांटने वाला कोई नहीं है, मैं अकेला ही इस दुःख को भोग रहा हूँ |
इसको भोगने के लिय मेरी पत्नी भी मेरे दुःख में सहयोगी नहीं बन पा रही है, परिवार के सभी लोगों ने बहुत कोशिश की लेकिन मेरा दुःख किंचित मात्र भी वो बाँट नहीं पाये | मैं ऐसी ही असहनीय वेदना में पड़ा हुआ था, रात्रि में मैंने विचार किया कि अगर सुबह मेरी आँखें ठीक हो गई तो मैं इस संसार को त्याग करके वन में
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