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वचन, जब राजा प्रसन्न हो ही गया ता यह निश्चित है कि राजा ने जो कुछ मुँह से कह दिया, वह अमिट है, “प्राण जायें, पर वचन न जाई" सज्जन पुरुष वही हैं जो प्राण चले जायं पर वचन को नहीं तोड़ते | पंडित जी ने सोचा कि एक बच्चा तो इस वर्ष होने वाला है,
और एक बच्चा अगले वर्ष भी तो होगा, इसलिये दस रुपये माँग लें । फिर सोचा एक इस वर्ष, एक अगले वर्ष और एक अगले वर्ष भी तो होगा। तो दस से काम नहीं चलेगा, 15 रुपये माँग लो। फिर सोचा, तीन बच्चे तीन वर्ष में हो गये तो उनकी पढ़ाई की भी चिन्ता होगी, इसलिये 50 रु. माँग लो। फिर विचार आया राजा प्रसन्न हो ही गया ता 5000 रु. माँग लिये जायें, सो छोटी-मोटी दुकान खोल कर बैठेंगे | कम-से-कम पंडित जी से सेठ जी ता कहलाने लगेंगे । फिर सोचा, दुकान खोल ली, बेचना तो जानते नहीं, थोड़ी पूंजी, पड़ गया घाटा, 5 नहीं 50 हजार माँग लें और थाक का व्यापार करेंगे। फिर पंडित जी ने सोचा, 50 हजार ले लिय, लम्बा-चौड़ा व्यापार कर लिया, विदेशों से आत समय कोई जहाज समुद्र में पलट गया तो फिर क्या होगा? उसने सोचा क्यों झंझट में पड़ना, राजा का आधा राज्य ही माँग लो हम राजा हमारी पत्नी रानी हमार बच्चे राजकमार किसी भी प्रकार की चिन्ता नहीं रहेगी। राजा अपना राज्य देन में हिचकिचा तो सकता नहीं, क्योंकि वचन दे चुका है। फिर मन में आया आज राजा प्रसन्न है, कहीं कदाचित राजा अप्रसन्न हो गया तथा राज्य छीन लिया तो क्या होगा? इसलिये आधा नहीं, पूरा राज्य ही माँग लो | साचा पूरा राज्य माँगेंगे, तो लोग क्या कहेंगे? राजा ने पुनः पूछा- पंडित जी क्या विचार कर रहे हो। पंडित जी बोले - हम राजा बन गये, आपका राज्य तक हमने ले लिया, परन्तु सुख नहीं मिला, वहाँ सुख है ही नहीं। यदि सुख चाहिए है, तो जो कुछ
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