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को तैयार हा क्या? बिल्कुल नहीं, स्वप्न में भी नहीं। परिग्रह को पाप माना ही नहीं, दुःख का कारण माना ही नहीं, आकिंचन्य गुण का घातक माना ही नहीं, अगर मान लिया होता, तो आज तक चला गया होता दुःख, हो गयी होती प्राप्ति सच्चे सुख की | आकिंचन्य धर्म की प्राप्ति संग्रह से नहीं, विमाचन से है | इच्छा ही दुःख का मूल कारण है -
एक दिन की बात है। एक पत्नी अपने पंडित पति से बोली कि पतिदेव बच्चा होने वाला है। घर में कुछ है नहीं, आप जितना लाते हो, उदरपूर्ति हो जाती है। राजदरबार में चले जाआ, कुछ इनाम मिल जायेगा। अपना काम भी बन जायगा। जब किसी प्रकार की चिन्ता लग जाती है, तो रात भर नींद नहीं आती। रात्रि में 12 बजे चन्द्रमा पर बादल आ गये, तो साचा सबेरा हो गया। उल्टी-सीधी बाँधी पगड़ी, पंचांग लिया हाथ में और पहुँच गय राज दरबार में | कोतवालों ने समझा कोई चोर है, हाथ में डाली हथकड़ी और बन्द कर दिया। सुबह होते ही राजदरबार में पेश किया गया। राजा ने कहा-पंडित जी और चोरी, एक साथ दा बात बनती नहीं, सच बता दो | पंडित जी बोले – मेरे घर कल खाने को नहीं है, मेरी पत्नी ने कहा – राजदरबार में चले जाओ, सबसे पहले राजा को शुभ आशीष वचन सुनाआगे, राजा प्रसन्न हा जायेगा, 5 रु. मिल जायेंगे अपना काम बन जायगा | राजा न कहा – धिक्कार है मेरे को, जिसके राज्य में ऐसे लोग हैं, जिनके पास कल खाने को नहीं। राजा वही, जो प्रजा का पुत्रवत् प्रेम करता हो ।
राजा न कहा - पंडित जी! आप इतनी लक्ष्मी माँग लो, इतना धन माँग ला, जिससे तुम्हें किसी प्रकार का कष्ट न हा| पंडित जी ने सोचा कि 5 रुपये अपने को वैस ही मिलत थे। और राजा के
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