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काम दे देते, पर क्या करें, साधु जी की बात तो मानना ही पड़ेगी
और वह राजा आश्रम में झाडू लगाने का काम करने लगा। 8-10 दिन बाद जब वह कचरा फेकने जा रहा था, तो साधु जी का एक चेला उससे टकरा गया। राजा को बहुत गुस्सा आई बोला-मैं राजा और तू देखकर भी नहीं चलता | वह चेला सब रिर्पोट साधु जी तक पहुँचा देता था। 10-15 दिन बाद वह चेला फिर स राजा से टकराया। इस बार राजा बोल-भाई देखकर तो चला करो। और कचरा उठाकर फेकने चला गया। जब साधु जी के पास रिपोर्ट पहुँची ता साधु जी समझ गय, राजा सही रास्ते पर है, पर अभी दर है। कुछ दिन बाद वह चेला पुनः राजा स टकराया, ता इस बार राजा कुछ भी नहीं बोला और चुपचाप कचरा उठाकर फेकने चला गया । ____ अब साधु जी ने राजा को बुलाया और कहा-अब तुम खाली हुये हो । जब तक तुम अपने आपको राजा मानत रहोगे, जब तक अन्तरंग में ये क्रोध, मान, माया, लोभ आदि विकार बैठे रहेंगे, तब तक तुम आकिंचन्य धर्म को प्रकट नहीं कर सकते ।
आकिंचन्य धर्म क लिय 10 प्रकार के बाह्य और 14 प्रकार के आभ्यन्तर दोनों प्रकार के परिग्रह का त्याग आवश्यक है । पाँच पापों में परिग्रह भी एक पाप है। इसी परिग्रह पाप ने हमारे आकिंचन्य गुण को ढक रखा है। कुल परिग्रह 24 प्रकार क होते हैं। बाह्य परिग्रह 10 प्रकार के हैं - क्षेत्र (खेत, प्लाट), वास्तु (निर्मित भवन), हिरण्य (चाँदी), सुवर्ण (सोना), धन (रुपये-पैसे), धान्य (अन्नादि), द्विपद (मनुष्य, पक्षी), चतुष्पद (पशु आदि), कुप्य (कपड़े), भांड (बर्तन)।
अन्तरंग परिग्रह 14 प्रकार क हैं - मिथ्यात्व, क्रोध, मान, माया,
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