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दो आदमी हैं। अपनी-अपनी चादर धोबी को धोने के लिए दते हैं। दो तीन दिन बाद एक आदमी धोबी के घर चादर लेने चला गया, ता धोबी ने दूसरे व्यक्ति की भूल में बदल करके चादर दे दी। उस व्यक्ति ने सोचा कि हाँ यह मेरी चादर है। वह अपने घर गया और चादर तान कर सो गया। अब वह दूसरा व्यक्ति अपनी चादर लेने धोबी के पास आया, तो धोबी ने जो चादर निकाल कर दी उसे उसने कहा कि यह मेरी नहीं है। यह तो किसी दूसरे की है। धोबी ने कहा कि अर वह तो बदल गई है। तुम तो उस व्यक्ति को जानते हो, जो साथ आया था, उसी क पास वह चादर चली गयी है। सो वह व्यक्ति उसके घर जाता है जिससे चादर बदल गयी थी। जब वह वहाँ गया तो देखा कि वह चादर ताने सो रहा है | वह उससे बाला कि आपसे मेरी चादर बदल गयी है सो आप मेरी चादर दे दीजिए। वह जाग जाता है और देखता है कि मेरी चादर में कोई निशान है कि नहीं | चादर में दखा तो काई निशान नहीं । यह चादर मेरी नहीं है, ऐसा सोचते ही उसको चादर का त्याग हो गया। भीतर में ज्ञान हो गया कि यह मरी चादर नहीं है। देखो भीतर से ज्ञान उसका सही बन गया । सही ज्ञान बन जाने स यह ज्ञान हो गया कि ये मरी नहीं है। उपयोग में चादर का त्याग कर दिया। इसी तरह गैर पदार्थ जिन पदार्थों में मोही रत हा रहे हैं, कुटुम्ब, परिवार इत्यादि जो सामन हैं, उनको भिन्न समझ कर निश्चय कर लो कि तेरा कोई नहीं है । तरा मात्र तू ही है | तू अपने आपको देख, अपने आपका पहिचान, तब तो तरा गुजारा चलेगा, नहीं तो तेरा गुजारा नहीं हो सकता है | तू ऐसा समझ कि यह मेरा नहीं है | जब तू ऐसा समझेगा कि ये मेर नहीं हैं तो तेरा माह और झंझट खत्म हो जायेगा। और यदि तू भूल करके अपने कुटुम्ब-परिवार इत्यादि में
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