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बन गया है । यही कारण है कि दुःख के कारण इससे चला नहीं जा रहा है। लड़की ने नौकर से कहा कि भाई मारो मत। हम इसे समझा देंगे, तब चलेगा। ऊंट भी पहचान गया । लड़की भी पहचान गई । स्त्री कहती है ऊंट से कि देखो पूर्व जन्म में तुम हमारे पति थे और धर्म न करने के कारण तुम ऊंट बन गये हो । परन्तु यह मेरे पति हैं, ऐसा कहने में तो मुझे शर्म लगती है, सो मैं तो कहूंगी नहीं। अब तो चलने में ही कुशल है । चलना तो पड़ेगा ही अन्यथा डंडे लगेंगे । यही हाल यहाँ के समस्त प्राणियों का है कि वे धर्म नहीं करते और संसार में कहीं ऊंट, कहीं कीड़े-मकोड़े, कहीं कुछ, कहीं कुछ नाना प्रकार के जीव हो जाते हैं। देखो ना, राजा ने धर्म नहीं किया था इसलिए ऊंट बन गया था। तो ऊंट की ही बात नहीं, कुछ भी अटसट बन जावें ।
जो धर्म नहीं करता वह मरकर दुर्गति का पात्र होगा। इस मनुष्य भव में सब तरफ के रास्ते खुले हैं। यदि ये मनुष्य चाहें तो कीड़े-मकोड़े बन सकते हैं, पशु-पक्षी बन सकते हैं, देव बन सकते हैं, मनुष्य बन सकते हैं। सारे रास्ते इस मनुष्य भव में खुले हैं । नारकी मरकर नारकी व देव नहीं हो सकता, देव मरकर देव व नारकी नहीं हो सकता । पर इस मनुष्य भव में जो जैसा चाहे वैसा ही बन सकता है । तो धर्म के लिए करना क्या है ? धर्म के लिए दान करना है क्या, श्रम करना है क्या? अरे भीतर से यह ज्ञान बनाना है कि यह तन-धन मेरा नहीं है । मैं तो सबसे निराला हूँ, ज्ञान मात्र हूँ, ज्ञायक स्वरूप हूँ। अन्य मैं कुछ नहीं हूँ । मेरा किसी अन्य से सम्बन्ध नहीं है। मैं अपने आपको सबसे निराला ज्ञानमात्र देखूं । जो अपने आपको पहचान लेता है उसकी पर से ममत्व बुद्धि स्वतः छूट जाती है ।
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