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बताओ, गलती सुधरवाऊंगा। चाहे आधी हवेली गिरवानी पड़े तो भी कौन-सी बात है, उसे सुधरवाऊंगा अवश्य । एक व्यक्ति खड़ा होकर बोला, मानो कोई जैनी हो। कहा कि सेठ जी इसमें दो गलतियाँ हैं । यह सुनकर सेठ जी चौकन्ना हो गए। अपने इंजीनियरों से कहा कि देखो यह जो गलतियाँ बतावे उनको अवश्य सुधारना। रुपयों की परवाह नहीं । इंजीनियर लोग बोले कि क्या गलती है यह बताओ । वह ज्ञानी बोला कि एक गलती तो यह दिखती है कि यह हवेली सदा बनी नहीं रहेगी। सेठ जी सुनकर दंग हो गए। इस गलती को कैसे सुधारा
। और बोला कि दूसरी गलती यह है कि इसको बनवाने वाला भी सदा नहीं रहेगा। सेठ जी फिर सुनकर दंग हो गए। बोले कि ये दो गलतियाँ कैसे सुधारी जावें कि न तो यह हवेली ही सदा रहेगी और न इसको बनवाने वाला ही सदा रहेगा । सच है, अरे कुछ नहीं रहेगा । जिनमें तुम इतराते हो, वे तुम्हें धोखा देंगे । हजार वर्ष पहले की बनवाईं हुईं हवेलियाँ तुम्हें क्या दिखाई पड़ती हैं? क्या वे उस समय मजबूत नहीं बनवाईं गई होंगीं ? उनमें खूब मसाले भर-भरकर बनवाया गया होगा, तब भी वे हवेलियाँ नहीं रहीं । सो ये भी हवेलियाँ अवश्य बरबाद हो जायेंगीं, मिट जावेंगीं । उन हवेलियों के बनवाने वाले लोग भी मिट गए होंगे | तब फिर इन हवेलियों में क्यों इतराएं? यहाँ कुछ भी मेरा नहीं है ।
तू बाह्य पदार्थों को अपना सर्वस्व न मान, क्योंकि उनसे तेरा हित नहीं होगा । तू अपने आत्म स्वरूप का ख्याल कर, सारे विकल्प जो बने हुए हैं उनको भुला दे तो तेरा हित होगा। तू उन विकल्पों का स्मरण कर जिनको पहिले किया उनके फल में क्या कुछ अब रहा है ? नहीं, तो विकल्प कहाँ हैं? विकल्प कहीं दिखते नहीं हैं और यदि दिखते हों तो दिखा दो । इनका रंग कैसा होता है, किस रूप के
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