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होते हैं? अरे विकल्पों की शक्ल सूरत नहीं होती । केवल कल्पनाएं बना लेने से विकल्प हो जाते हैं ।
एक समय जब कि बूंदें पड़ रही थीं, झोपड़ी में पानी चू रहा था, झोपड़ी के पास शेर खड़ा था। झोपड़ी में एक व्यक्ति बोला कि इतना तो शेर का भी डर नहीं, जितना टपके का डर है । जितना टपका परेशान करता है, उतना तो यह शेर नहीं परेशान करता । पास में खड़े शेर ने समझा कि टपका कोई मुझ से भी बहादुर है । उसी समय एक कुम्हार का गधा खो गया था । वह रास्ते में ढूंढ़ रहा था । जाते-जाते जहाँ पर शेर खड़ा था, वहाँ पर पहुँचा । वह शेर को गधा समझ गया। झट से उसे गधा समझकर उसका कान पकड़ लिया। अब शेर यह समझता है कि टपका आ गया। उसने उस शेर के ऊपर डंडे भी चलाए । शेर ने सब सह लिया । उसने शेर को बाड़ी में बांध दिया। जब सबेरा हुआ तो देखा कि यहाँ तो टपका - वपका कुछ नहीं है । तब शेर ने छलांग मारी और चल दिया। उस शेर ने विकल्प बनाकर ऐसा भाव बनाया कि अरे यह तो टपका आ गया, डर गया। इसी तरह ये विकल्प कुछ नही हैं । ये विकल्प पकड़ में नहीं आते, कुछ क्लेश नहीं करते, फिर भी विकल्पों के अधीन होकर यह विकल्पों का दास हो गया और वैसे ही परिणाम हो गए। और जब विकल्पों के द्वारा इस प्रकार के परिणाम हो जाते हैं तो शान्ति नहीं रहती है, चैन नहीं आती है । इस प्रकार यह जीव अपने विकल्प बनाकर, कर्मों के फलों को अपनाकर व्यर्थ ही दुःखी होता है । तो अच्छा यह है कि जितना अधिक ज्ञान का उपयोग मिले, आत्म चरित्र का शिक्षण मिले उतना ही अच्छा फल है । हे आत्मन् ! तू अपनी वर्तमान अवस्था को मायारूप मानकर, अपनी आत्मा को पहिचानकर सदा स्वाधीन हो । और इन आकिंचन्य आदि धर्मों को धारण करो ।
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