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पर जो बैठा है, उसकी सब करतूत है । सब शेरों ने हिम्मत की और स्यार के पास पहुँचे । अब सब यह सोचते हैं कि इसके पास कैसे पहुँचा जाय । सोचा कि एक के ऊपर एक खड़ हो जावें । उन सबमें से एक लंगड़ा शेर था । सलाह हुई कि यह ऊपर नहीं चढ़ सकेगा सो इसको नीचे ही खड़ा करो । लंगड़ा शेर नीचे खड़ा होता है और एक के बाद दूसरा, तीसरा, चौथा खड़ा होता चला जाता है । इतने में ही स्यारनी के बच्चे रोने लगते हैं । स्यार, स्यारनी से पूछता है कि बच्चे क्यों रो रहे हैं? स्थारनी ने कहा कि बच्चे लंगड़े शेर का मांस खाना चाहते हैं। लंगड़ा शेर इतना सुनकर घबड़ा गया । वह एकदम से भागा । दूसरे शेर जो ऊपर चढ़ पाए थे वे शेर भदभद गिरने लगे और सब भाग गए। इसी प्रकार हम सब पर अनेक विपत्तियाँ छाई हैं । जितने जगत के क्लेश हैं, वे पर में आपा बुद्धि है, इस बुनियाद पर खड़े हैं। ये सारे क्लेश, विपदाएं यों ही खत्म हो जाएं, यदि पर में जो ममत्व बुद्धि है, वह खिसक जाए ।
अपने आकिंचन्य स्वरूप को न जानने के कारण यह जीव पर - पदार्थों को अपना मानते हैं और इनका अभिमान करते हैं । पर ध्यान रखना जिन सारी बातों में हम गरवाये होते हैं अर्थात् घमंड करते हैं, वे मेरी कुछ नहीं हैं । वे सब मुझे भ्रम में डालने वालीं बातें हैं। जिनमें हम इतराते वे ही हमें धोखा देती हैं ।
एक नगर में एक सेठ जी थे। उन्होंने 7 खंड की सुन्दर नई डिजाइन की एक हवेली बनवाई। उद्घाटन कराने के लिये उन्होंने बहुत से निमंत्रण भेज, लोग आये उद्घाटन हुआ । सेठ जी के यहाँ पर बहुत बड़ा जल्सा था। यह जल्सा सेठ जी के ही निमित्त से हुआ था । सेठ जी खड़े हो गए, बोले कि भाई यह हवेली जो हमने बनवायी है, जो आप लोगों के सामने है, उसमें यदि कोई गलती हुई हो तो
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