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पर क्रोध कर रहा हूँ, किस बात पर क्रोध कर रहा हूँ? क्या वह बात क्रोध करने जैसी है या नहीं? व्यक्ति ऐसी-ऐसी बातों पर क्रोध कर लेता है जिसका कोई औचित्य नहीं और फिर बाद में पछताता है। न जाने कैसी-कैसी मूर्खतापूर्ण बातों पर व्यक्ति क्रोध करने लगता है । वह व्यक्ति उन बातों पर चिंतन करे, विचार करे तो उसे स्वयं हँसी आ जायेगी कि मैं किन बातों पर लड़ रहा हूँ ।
पति-पत्नी आपस में लड़ रहे हैं। बात इतनी-सी थी कि पति कह रहा है कि मैं बेटे को डाक्टर बनाऊँगा, परन्तु पत्नी कह रही है कि मैं बेटे को वकील बनाऊँगी । पत्नी बोली- नहीं, मेरा बेटा वकील बनेगा। पति बोला- नहीं, मेरा बेटा डॉक्टर बनेगा। दोनों इतने जोर-जोर से लड़ने लगे कि रास्ता चलते लोगों को आवाज सुनाई देने लगी। एक व्यक्ति अंदर आया और उनसे पूछा कि आप लोग लड़ क्यों रहे हैं? उन्होंने कहा- ये हम लोगों का आपस का मामला है, आप इसमें दखलंदाजी न करें । उसने कहा- बात तो बताओ ।
पत्नी बोली- मैंने इनसे पचास बार कहा कि मेरा बेटा वकील बनेगा। पति ने कहा- नहीं, मैं इनसे हजार बार कह चुका हूँ कि मेरा बेटा डॉक्टर बनेगा । उस व्यक्ति ने कहा कि, बाबा! इसमें लड़ने की क्या बात है? आप लड़के को बुलाइये, उसी से पूछ लेते हैं कि वह क्या बनना चाहता है ?
पति - पत्नी ने एक दूसरे को देखा, आपस में मुस्कुराये और शर्मिन्दा हुये, पत्नी ने कहा- भाई साहब बच्चा तो अभी पैदा ही नहीं हुआ है।
देखिये क्रोध कितना अंधा होता है, कैसी मूखर्तापूर्ण बातों पर क्रोध का जन्म हो जाता है। जिन बातों का कोई औचित्य ही नहीं
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