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सावधान रहें जो कि सब किये कराये पर पानी फेर देता है । वह दोष है एषणा - पुत्रषणा, वित्तेषणा लोकेषणा "यदि मेर व्यापार में लाभ हो जाय, अथवा, मेरी नौकरी लग जाय, अथवा परीक्षा में या मुकदमें में सफल हो जाऊँ, अथवा यदि मेरे पुत्र उत्पन्न हो जाये तो हे प्रभो ! मैं तेरे चरणों में अमुक वस्तु भेंट दे दूं, अथवा इतना रुपया
दूँ, अथवा छत्र चढ़ा दूं अथवा मंदिर में वेदी बनवा दूँ । इस प्रकार के प्रयोजन से भगवान को दी गई घूस वित्तेषणा और पुत्रेषणा से युक्त होने से दान नहीं है। इसी प्रकार इस दान से समाज में मेरा नाम हो जाये, मेरे पिता, पितामह का नाम हो जाये, मेरी कीर्ति फैल जाये कि मैं बड़ा ही धनाढ्य, धर्मात्मा तथा दानवीर हूँ, इस प्रकार के अभिप्राय से दिया गया सर्व दान लोकेषणा युक्त होने से निरर्थक है ।
वर्णी जी ने लिखा है, क्या करोगे इस नाम को लेकर खाओगे, बिछाओग या आढ़ोगे इसे ? मात्र तुम्हारी एषणाओं, कामनाओं का, इच्छाओं का पोषण ही तो हो रहा है इससे और क्या | राग अथवा इचछाओं को कम करने के लिये दिया था दान और कर बैठे उसका पोषण | सौदेबाजी के अतिरिक्त और क्या कहें इसे? जिस प्रकार बाजार में पैसे देकर वस्तुयें खरीद ली जाती हैं, उसी प्रकार यहाँ भी पैसे देकर कीर्ति खरीद ली । घूसखोरी का व्यापार है यह । इससे स्व व पर किसी का भी हित नहीं होगा । त्याग करते समय प्रत्युपकार की कामना की भावना नहीं होना चाहिये ।
पश्चिम बंगाल में ईश्वरचन्द हुये हैं । वे बड़े परोपकारी थे। एक बार रास्ते में एक व्यक्ति को दुःखी देखकर वे ठहर गये। मालूम पड़ा कि व्यापार में घाटा हो जाने से उसकी सारी सम्पत्ति डूब गई । एक मात्र छोटा-सा मकान बचा है जिसमें अपने परिवार सहित वह अपने दुःख के दिन व्यतीत कर रहा है । परन्तु आज मकान भी नीलाम हो
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