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में स्वर्ण का कंगन देख माघ चुपके से वहाँ गय और धीरे से एक हाथ का कंगन निकाला | पत्नी जाग गई। उसने समझ लिया कि पति न कंगन निकाला है । कोई-न-कोई याचक आया है | माघ कुछ सकुचान से पर वह तत्काल बाली-यह दूसरा कंगन और ले लो, भला एक कंगन से क्या होगा? पत्नी के इस सहयोगी श्रेष्ठ भाव का देखकर माघ का मन एकदम प्रसन्नता से भर गया। कन्या के विवाह हेतु जब दोनों स्वर्ण कंगन याचक के हाथ पर रखे तो फिर याचक के पास कहने के लिय कुछ शब्द ही नहीं थे। वह कृतज्ञ आँखों से माघ की दानशीलता को देखता हुआ चुपचाप चला गया। ___ दान देना ही जगत में ऊँचा है | मन की निर्मल कीर्ति दान देने से ही फैलती है। सच्ची भक्ति से थोड़ा भी दान देने वाला भोग भूमि में तीन पल्य पर्यन्त सुख भोगकर, देव लोक में चला जाता है। सत्पात्र को दिया गया दान चारित्र की वृद्धि करता है। दान देत समय दाता के परिणाम अत्यन्त विशुद्ध होना चाहिये | दान देने की बात तो दूर दान की अनुमोदना करने वाला भी महान पुण्य का भागी होता है। प्रत्येक गृहस्थ को अपनी शक्ति अनुसार सत्पात्रों को आहारदान, ज्ञानदान, औषधिदान और अभयदान अवश्य देना चाहिये । ___ माघ कवि के समान निष्काम दातार बनो और सदा विनयपूर्वक दान दो । दानी का ऐसा अभिमान नहीं करना चाहिये कि मैं इनका उपकार कर रहा हूँ | दानी ता पात्र को अपना महान उपकार करने वाला मानता है | पात्र बिना संसार से उद्धार करने वाला दान कैसे बनता? धर्मात्माजनों को तो पात्र के मिलने क समान तथा दान देने के समान अन्य कोई आनन्द नहीं है। दान सदा सद्भावना पूर्वक, प्रेमसहित बचन बोलकर करना चाहिये |
दातार का सर्व प्रथम कर्तव्य है कि उस महादोष के प्रति
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