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अपनी जान से प्यारी गाय को बेचने गया तो बाजार में कई कसाई उस गाय पर ललचाये | रहमान का दिल उनकी शक्ल देखकर ही काँप जाता था, माल-भाव चल रहा था, कसाई लाग 60 रुपये तक देने को तैयार थे। पर रहमान अपनी गाय उन्हें देने को तैयार नहीं हुआ। तभी सठ दाऊदयाल उस बाजार से गुजरे, उन्हें गाय बहुत पसंद आई। रहमान ने देखा भले आदमी हैं, मेरी गाय मज में रहेगी, ऐसा विचार कर उसने अपनी गाय मात्र 35 रुपये में सेठ जी को दे दी। सेठजी को आश्चर्य हुआ कि इसने उन्हें 60 रुपये में भी गाय नहीं दी और मुझे 35 रुपये में दे दी | सेठ दाऊदयाल और पीछे-पीछे रहमान गाय को लेकर चल रहा था, आँखों स आँसू गिर रहे थे। सेठ जी का घर आ गया, तब रहमान ने सेठ जी से कहा कि आप अपने नौकर से कह देना कि वह मेरी गाय को मारे ना। इतना कहकर रहमान रो पड़ा, जैसे एक पिता अपनी बेटी की विदा कर रहा
हो।
कालान्तर में रहमान, सेठ दाऊदयाल से कभी माँ को तीर्थयात्रा को, तो कभी माँ के अंतिम संस्कार के लिय कर्ज लेता है, किन्तु भावना देने की रखता है। इस बार रहमान की फसल ऐसी आई कि सारे गाँव में धूम मच गई, रहमान प्रभु को याद करते हुये सोच रहा था कि इस बार सेठ जी का पूरा कर्जा चुका दूँगा, पर भाग्य में कुछ और ही लिखा था । पूस का महीना था, ठंड के मारे रहमान काँप रहा था, तापने को अग्नि जलाई तभी तेज हवा चली, आग फैल गई और देखते-ही-दखते सारी फसल जल गई। रहमान चिन्तित था कि सेठ दाऊदयाल का कर्ज कैसे चुकाऊँगा।
तभी सठ जी ने रहमान को अपने घर बुलवाया, रहमान डरता-डरता सेठजी के घर गया और जाकर चरणों में गिर कर
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