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बोला-हुजूर! अब आप ही रक्षक हैं, सारी फसल जल गई, पर विश्वास करो मैं बाद में आपके पूरे पैसे चुका दूँगा। सेठ जी ने रहमान को उठाकर गले से लगाया और बोले-रहमान तू दुःखी मत हो, तेर ऊपर मरा कोई कर्ज नहीं है, मैं तो तुझे आजमा रहा था, आज तू मेरे कर्ज से मुक्त है। इतना सुनते ही रहमान बोला कि हुजूर यहाँ नहीं तो वहाँ चुकाना पड़ेगा। तब सेठ जी बोले-मैंने यहाँ, वहाँ सब जगह माफ किया, तू इंसान नहीं देवता है | तून विपत्ति में भी घाटा उठाकर मुझे गाय दी थी और धर्म की रक्षा की थी। आज से यह घर तेर लिये सदा के लिये खुला है, जो चाहेगा सब मिलेगा। रहमान के त्याग न उसे महान बना दिया। इसी प्रकार जो धर्म-मार्ग पर चलते हुय त्याग व्रत का पालन करते हैं, इतिहास उन्हें सदा याद करता है।
दान का अर्थ है, अपन तन, मन और धन से औरों की सहायता करना। मनुष्य जीवन ही ऐसा है कि दूसरों की सहायता के बिना हमारा कोई काम नहीं बन सकता| जब हमें औरों की सहायता की आवश्यकता पड़ती है, तो हमारा भी कर्तव्य है कि हम औरों की भी सहायता करें | अतः दान करना परमावश्यक है। देखो मनुष्य दोनों हाथों से कमाता है, मगर खाता एक हाथ से है। इसका मतलब यही है कि जो अपने दानों हाथों की कमाई है, उसमें से एक हाथ की कमाई को ता अपने शरीर व कुटुम्ब के पालन-पोषण में खर्च करें | शेष एक हाथ की कमाई का परापकार क कार्यों में खर्च करे | हम किसी को छोटा न समझें । सभी को चाहिय कि घर आये महमान का आदर सत्कार करें और कुछ नहीं तो कम-से-कम मीठा बोलकर उसे अपने पास बैठने की जगह दें।
राजस्थान के इतिहास में महान् उदयन के बारे में लिखा है-वह
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