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त्याग के कारण वे भी महान बन जाते हैं । इतिहास उन्हें सदा याद करता है ।
कौशल देश का एक राजा जिसका राज्य छिन गया था वह भिखारी के वेष में दर-दर की ठोकरें खाता हुआ अपने राज्य के एक गाँव में पहुँचा। गाँव का हाल देखकर राजा हैरान हुआ, चारों ओर भुखमरी, बीमारी, चेहरों पर हताशा, इससे भी ज्यादा हैरानी राजा को यह हुई कि एक भी जवान आदमी गाँव में न दिखा, सभी बूढ़े आदमी व बेवा स्त्रियाँ थीं । राजा से न रहा गया, तब एक दादा से पूछा कि क्या गाँव में एक भी जवान आदमी नहीं, तब दादा बोले, तुम्हें नहीं मालूम मुसाफिर हमारे राज्य पर किसी बड़े राजा ने आक्रमण किया, चारों ओर देशभक्ति की लहर दौड़ गई, सभी वीर युवक रण भूमि में वीरगति को प्राप्त हो गये। तब राजा पूछा कि क्या कोई भी नहीं बचा है? वृद्ध बोला हे मुसाफिर! माता और मातृभूमि के ऋण से मानव कभी उऋण नहीं हो सकता इसीलिये जन्म भूमि की रक्षा के लिये हमारे गाँव के लोगों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी । राजा की आँखों में आँसू आ गये, उसने विचार किया कि मुझे जिन्दा या मुर्दा पकड़ने वाले को मिथला नरेश ने 1000 स्वर्ण मुद्रायें पुरस्कार में देने की घोषणा की है। क्यों न मैं इन असहायों को लेकर राजा के समक्ष हाजिर हो जाऊँ और पुरस्कार इन ग्रामीणों को दिलवा दूँ, ताकि वे सुखी जीवन जी सकें ।
दूसरे दिन राजा उन ग्राम वासियों को लेकर मिथला नरेश के पास पहुँचा, मिथला नरेश सकते में आ गया, वह विचार करने लगा कि जिसे मैं खोज रहा हूँ, वह स्वयं मौत के मुँह में आ गया । मिथलेश अभी कौशल नरेश को देख ही रहा था कि कौशल नरेश बोला कि हे मिथलेश ! तुम्हें मेरा राज्य प्रिय था, वह तुम मुझसे छीन
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