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वर्णी जी ने चार में से दो पेड़े निकालकर ताँगे वाले को बड़े प्यार से दिये और दो स्वयं खा लिये | ताँगे वाला कृतज्ञता स भर गया । अभी थोड़ी देर ही चले थे कि पैदल जाती हुई चार सवारियाँ मिल गई। वर्णी जी ने बड़े दया भाव से कहा कि, भइया! इन्हें भी बिठा लो | चार सवारियाँ और बैठ गई। ताँगा अपनी चाल से धीरे-धीरे चल रहा था। उन चार सवारियों ने हड़बड़ी मचाई | ताँगे वाले से बार-बार कहना शुरू किया कि जरा जल्दी चलाआ | आप देख रहे हैं, इस संसार की दशा | जो थाड़ी देर पहले पैदल जा रहे थे, जिन्हें कृपा करक ताँगे में बैठा लिया अब वे लोग बड़े अधिकार पूर्वक ताँगे वाले का जल्दी चलन के लिये कह रहे हैं। सिर्फ अपना जीवन, अपनी सुख-सुविधा का ही जिन्हें ख्याल है, वे और चाहे जो प्राप्त कर लें पर सच्ची सुख-शान्ति प्राप्त नहीं कर सकते । ___अचानक तेजी से हवा आई और धूल उड़ने लगी। वर्णी जी को थोड़ी परेशानी महसूस हुई | ताँगे वाले ने ताँगा थोड़ी तज-रफ्तार से चलाना शुरू कर दिया, ताकि वर्णी जी को धूल कम लगे | उन चार सवारियों में से एक व्यक्ति ताँग वाले से थोड़ा गुस्से में बोल पड़ा कि देखो इस आदमी (वर्णी जी को और इशारा करके) के लिये तुमने ताँगे की रफ्तार तेज कर दी और इतनी देर से हम लोग जल्दी चलने को कह रह थे तो हमारी बात सुनी नहीं। पैसे तो हम भी देंगे | ताँगे वाले की आँखों में आँसू आ गये, उसने हाथ जोड़ लिये और कहा-आप लोग नाराज न हां । पैसा ही सब कुछ नहीं है । पैसे तो हमें सबसे मिलत हैं, पर इन्होंने (वर्णी जी ने) जा दो पड़े प्यार से दिये हैं, वह कोई नहीं देता | इसीलिये कहा प्रेम पूर्वक दिया हुआ थोड़ा भी बहुत होता है | त्याग का महत्त्व प्रत्येक जगह है। जो लौकिक त्याग करते हैं,
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