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________________ गाँव से निकले तो गाँव वाले बोले कि देखो, ये कितना मूर्ख है? पत्नी का तो पैदल चला रहा है और स्वयं घोड़े पर बैठा है? पति ने सोचा बात तो सही है कि मैं तो घोड़े पर बैठा हूँ और पत्नी को पैदल चला रहा हूँ। वह उतर गया और पत्नी को घोड़े पर बैठा दिया । दूसरे गाँव में गया तो कुछ लोगों ने कहा, देखो, इस निर्लज्ज औरत को पति को तो पैदल चला रही है, स्वयं घोड़े पर बैठी है । पत्नी ने सोचा, बात तो सही है कि पति पैदल चले और मैं घोड़े पर हूँ, यह ठीक नहीं। वह नीचे उतर गई । अब दोनों पैदल चलने लगे । तीसर गाँव में पहुँचे तो वहाँ पर कुछ लोग कहने लगे-कैसे मूर्ख हैं, घोड़ा खाली जा रहा है और दोनो पैदल चल रहे हैं? वे दोनों सोचते हैं ये बुरा हुआ, अपन ने ये तीनों कार्य बुरे किये । अब उन्होंने क्या किया दोनों ही घोड़े पर बैठ गये । अब वे चौथे गाँव में पहुँचे। तो लोग चिल्लाने लगे कि अरे ये मूर्ख देखा, घोड़े की जान ही लेने पर तुले हुए हैं । कहने का अभिप्राय है कि दुनिया में तुम कुछ भी करो, इनको सही कहना ही नहीं । जो कुछ भी करो, उनका गलती ही निकालना है । जो इज्जत नहीं बनाते, उनको तो ये करना ही है कि दूसरे की इज्जत में बट्टा लगाना है । उन्हें धर्म तो कुछ नहीं करना, उनको तो खण्डन ही करना है । यह ठीक नहीं । एक बार अलग-अलग देशों के केकड़ों को किसी अन्य स्थान पर ले जा रहा था एक व्यक्ति । हर देश के ककड़ों का डिब्बा बंद था । जिस डिब्बे में भारत के केकड़े रखे थे, वह डिब्बा खुला था । किसी ने कहा इसका बंद कर लो, अन्यथा ये केकड़े भाग जायेंगे | व्यापारी कहता है - चिन्ता मत करो, ये कहीं नहीं जायेंगे | यदि एक केकड़ा बाहर भागेगा तो दूसरा केकड़ा उसकी टांग पकड़कर खींच लेगा, ये भारत के केकड़े हैं। ऐसी छिद्रान्वेषिता स्व-पर का विनाश 491
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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