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हैं, कैसे क्या हुआ? सारी कहानी बताई । वे श्रावक उन मुनिराज के पास जाते हैं तो देखते हैं उन महाराज को केवलज्ञान प्राप्त हो गया ।
कर्मों की निर्जरा करने का प्रधान कारण तप ही है । जिसने भी दिगम्बर दीक्षा लेकर तप के माध्यम से अपनी आत्मा को पवित्र कर लिया उसे ही केवलज्ञान व मुक्ति की प्राप्ति होती है । तपोवन को प्राप्त होना अत्यन्त दुर्लभ है । तप तो कोई महाभाग्यवान् पुरुष पापों से विरक्त होकर, समस्त स्त्री, कुटुम्ब धनादि परिग्रह से ममत्व छोड़कर परम धर्म के धारक वीतराग निर्ग्रन्थ गुरुओं के चरणों की शरण में पाता है। गुरुओं को प्राप्त करके जिसके अशुभ कर्म का उदय अति मंद हो गया हो, सम्यक्त्व रूप सूर्य का उदय प्रकट हुआ हो, संसार, विषय-भोगों से विरक्तता उत्पन्न हुई हो, वही संयम - तप ग्रहण करता है ।
समस्त जीवों को उलझाने वाले राग-द्वेष आदि को जीतना, परिग्रह ममता नष्ट कर वांछा रहित हो जाना तथा प्रचण्ड काम का खण्डन करना, यह बड़ा तप है ।
सभी तपों में प्रधान तप तो दिगम्बरपना है । कैसा है दिगम्बरपना ? घर की ममता रूपी फंदे को तोड़कर, देह का समस्त सुखियापना छोड़कर अपने शरीर में शीत, उष्ण, गर्मी, वर्षा, वायु, डाँस, मच्छर, मक्खी आदि की बाधा को जीतने के सम्मुख होकर कोपीनादि समस्त वस्त्रों का त्याग कर दिगम्बरपना धारण करना बहुत बड़ा अतिशयरूप तप है ।
जिसके स्वरूप को देखने-सुनने पर बड़े-बड़े शूरवीर काँपने लगते |
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