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नग्न रहना, यावज्जीवन स्नान नहीं करना, जमीन पर शयन करना, अल्पनिद्रा लेना, मंजन नहीं करना, खड़ होकर रस-नीरस स्वाद छोड़कर थोड़ा भोजन करना आदि 28 मूलगुणों का पालन करना महा तप है। मुनिराज इन 28 मूलगुणों के प्रभाव से आत्म स्वरूप में लीन होकर घातिया कर्मों का नाश कर केवलज्ञान को प्राप्त करके मुक्त हा जाते हैं। दिगम्बर दीक्षा लेकर उसका निर्दोष पालन करना मोक्ष प्राप्ति का कारण है। निम्न दृष्टान्तों से इस बात को समझा जा सकता है।
इस जम्बूदीप क पूर्व विदेह में पुष्कलावती नामक एक देश है, उसके वीतशोकपुर नामक राज्य में महापद्म और वनमाला रानी के शिवकुमार नामक एक पुत्र हुआ | एक बार वह अपने मित्र के साथ वन क्रीड़ा करके अपने नगर को आ रहा था | तब वह मार्ग में देखता है कि कुछ लोग पूजा सामग्री लेकर जा रहे हैं। तब वह अपन मित्र से पूछता है कि ये लोग क्या कर रहे हैं? मित्र ने कहा य सागरदत्त नामक ऋद्धिधारी मुनिराज को पूजन के लिये वन में जा रहे हैं। तब शिवकुमार मुनि के पास वन में जाता है और अपना पूर्व भव सुनता है | सुनकर वह विरक्त हो जाता है और मुनिदीक्षा ले लेता है। एक दृढ़धर नामक श्रावक के घर प्रासुक आहार होता है । इसके बाद वह मुनिचर्या का पालन करते हुये बारह वर्ष तक तपकर अंत में संन्यास पूर्वक मरण करके ब्रह्म कल्प स्वर्ग में देव हो जाता है। वहाँ से आयु पूर्ण कर जम्बूकुमार नामक राजपुत्र हो, मुनिदीक्षा लेकर केवल ज्ञान प्राप्त कर मोक्ष को प्राप्त हा जाता है। इस प्रकार शिव कुमार ने मुनिचर्या का निर्दोष पालन करते हुये मोक्ष को प्राप्त किया।
एक शिवभूति नामक मुनिराज थे। उन्होंन गुरु के पास बहुत से शास्त्रों को पढ़ा किन्तु धारणा नहीं कर पाये | तब गुरु ने ये शब्द
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