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उसके फल से उन्हें सम्यक्त्व की उपलब्धि हो गई और 33 सागर की नर्क की आयु घटकर मात्र 84 हजार वर्ष की प्रथम नरक की आयु बची |
कर सच्च मन
हम लोगों को भी शाम को अपने दिन भर किये पापों का लेखा प्रायश्चित्त करना चाहिये । प्रायश्चित्त करने से पाप कम हो जाता है और कुछ ही दिनों में हम पाप करना छोड़ भी देते हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि चार आना दोष पश्चात्ताप करने से नष्ट हो जाता है। चार आना गुरु को बतलाने से, चार आना प्रायश्चित्त लेने से और शेष बचा हुआ दोष सामायिक में बैठने से समाप्त हो जाता है । जब भी हमसे कोई दोष हो जाये तो उसे तुरन्त स्वीकार कर प्रायश्चित्त अवश्य करना चाहिये ।
2. विनय तप विनय तप से मन में कोमलता आती है, विनय नाम आदर भाव का है। हमें सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान व सम्यक्चारित्र एवं इनके धारकों की विनय अत्यन्त विनम्र होकर करना चाहिये । विनय तप वह है जो मोक्ष मार्ग के प्रति और मोक्षमार्गी के प्रति उनके - जैसे गुणों की प्राप्ति के लिये किया जाता है ।
यदि कोई गुरु की विनय न करे, तो क्या सीखे ? रावण मृत्यु शैय्या पर पड़ा था तब राम लक्ष्मण से कहा रावण बहुत विद्वान् है जाओ, अन्तिम समय में कुछ सीख लो । लक्ष्मण गये और रावण के सिर के पास खड़े होकर अपना अभिप्राय प्रगट किया और उसे मौन देखकर वापिस लौट आये और राम से बोले- वह बड़ा अभिमानी है, कुछ बोलता ही नहीं । राम बोले हे लक्ष्मण ! अभिमानी वह नहीं, तू है । स्वभाव से ही तू उद्दण्ड है तूने अवश्य उद्दण्डता दिखाई होगी । वह कैसे बोले ? तुझे अगर कुछ सीखना है तो विजेता बनकर
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