________________
कमजोर करने के रूप में तीसरा पत्र भेजा, किन्तु तुमन उसका भी उपाय खोज लिया और आँखां पर चश्मा तथा कानों में मशीन लगाकर काम चलाने लगे | तृप्ति कहाँ? अभी तो बहुत कुछ देखना है, सुनना है। फिर भी तुम सावधान नहीं हुए, मैंन फिर भी दोस्ती निभाई और चौथा पत्र हार्ट अटैक के रूप में भेजा | तुम्हें हार्ट अटैक हुआ, तुम्हारा शरीर कमजोर पड़ गया। लेकिन तुम तो तुम्हीं थे, बाइपास सर्जरी करा ली। कमजोरी के कारण छड़ी लेकर घूमने लगे। तुम कैस उलाहना देते हो कि मैंने तुम्हें समाचार (संकेत) नहीं भजे? पत्र तो मैंने चार-चार भेजे हैं, लेकिन आप उनकी भाषा ही नहीं समझ पाय | सेठ को सारी बात समझ में आ गई लेकिन अब वह कर भी क्या सकता था? उन आखिरी क्षणों में सेठ को बहुत पश्चात्ताप हा रहा था। अब पछताये होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत? कुछ बचा ही नहीं सठ का करने के लिये, क्यांकि समय बीत चका था। आखिरी समय आया और सेठ को यहाँ से जाना पड़ा। यमराज के पत्र उस सठ/ श्रीमंत को तो मिले ही थे, इन सेठ / श्रीमन्तों को भी मिल रहे हैं किन्तु पता नहीं किस उपाय के खोजने में लगे हैं | संसार का रस कुछ ऐसा ही रस है कि दांत गिर जायें फिर भी चना, मूंगफली खाने की इच्छा खत्म नहीं हो पाती | चबा नहीं सकते तो कूट-कूट कर खायेंगे, पर खायेंगे जरूर | क्या करें? रस अभी अंदर का खत्म नहीं हुआ है।
भोगो न भुक्ता वयमेव भुक्तास्तपा न तप्तं वयमेव तप्ताः । कालो न यातो वयमेव याताः तृष्णा न जीर्णा वयमेव जीर्णाः ।। भोगों को इतना भोगा कि, खुद को ही भोग बना डाला। साध्य और साधन कम न्तर, मैं ने आज मिटा डाला ।। मेरा साध्य क्या था? और उस साध्य को पाने के साधन क्या थे?
(428)