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________________ यमराज को हंसी आ गई, उसने कहा कि प्रकृति के नियम का उल्लंघन तो हम नहीं कर सकते, पर इतना अवश्य है कि जब दोस्ती बनाई है तो उसे निभाऊँगा और लेने आने से पूर्व आपको पत्र जरूर भनूँगा ताकि आप सावधान हो जाओ, इतना कहकर वह काली परछाई अदृश्य हो गई। समय बीता, उम्र भी बीतती गई, सेठ अपने कार्यों में कुछ इस तरह उलझा कि यमराज द्वारा भेजे गये समाचार / संकेत वह समझ नहीं पाया और एक दिन अचानक यमराज आ धमके | अचानक यमराज को आया हुआ देखकर सेठ तो नीचे से ऊपर तक काँप गया. पसीना-पसीना हो गया. वह बोला यमराज! तुम एकदम आ गये | मैंने कहा था कि पत्र भेजना, पत्र तो भेजा नहीं और सीधे लेने आ गये | जरा दोस्ती तो निभानी थी, इतना बड़ा विश्वासघात? अरे संसार में हो तो ठीक किन्तु यमराज भी करने लगे यह तो ठीक नहीं। यमराज ने कहा-मैंन तुम्हारे लिए पत्र भेजे और एक नहीं चार-चार पत्र भेजे पर तुमने उन्हें पढ़ा नहीं, उन पर ध्यान ही नहीं दिया | सेठ बोला- मेरे पास तो एक भी पत्र नहीं आया, तब यमराज कहत हैं कि पत्र तो तुम्हारे पास आय हैं, यह बात अलग है कि तुमने उनकी भाषा नहीं समझी। सेठ बाला-ऐसा कैसे हो सकता है? आपने कोई पत्र भेजा हो तो बताओ। यमराज बोले- सिर के बाल सफेद करने के रूप में मैंने तुम्हें पहला पत्र भेजा था, लेकिन सेठ तुम एसे निकले कि पत्र पढ़ना तो दूर बाजार में जाकर हेयर डाय कराके आ गये | 20 का नोट फेका और सफेद बालों को काला करा लिया। मेरे संदेश को तुम समझे ही नहीं। मैंने दूसरा पत्र तुम्हारे दांत गिराने के रूप में भजा किन्तु तुम बाजार में गये और दांतों का नकली सेट लगाकर आ गये | सेठ! मैंने तुम्हारी आँखें, तुम्हारे कान (427)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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