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________________ बन्धन हैं । वांछा की यदि इच्छा बन गई तो क्लेश-ही-क्लेश हैं । यदि मैं इच्छायें न रखूं, ज्ञाता दृष्टा रहूं, तो मेरी हानि नहीं है । इच्छाओं से ही हानि है । मेरा पूरा इच्छाओं से नहीं पड़ेगा । इच्छाओं T से तो दुःख ही मिलेंगे । देखा हाथी, मछली, भंवरा ये प्रत्येक जीव इच्छा होने के कारण ही बंधन में पड़ जाते हैं, जाल में बंध जाते हैं, शिकारियों के चंगुल में फँस जाते हैं । यदि उनकी इच्छा नहीं होती तो वे बंधन में नहीं पड़ते । एक मनुष्य दूसरे मनुष्य के बंधन में पड़ जाते हैं । तो एक दूसरे बन्धनों में पड़ना भी इच्छाओं के ही कारण है । पुत्र की इच्छा है कि मैं ठीक रहूँ, मेरा बढ़िया गुजारा बने, मेरी उन्नति बने । ऐसी इच्छाओं के कारण ही वह पिता के साथ रहना स्वीकार कर लेता है । यह मेरा बच्चा बुढ़ापे में मेरे काम आयेगा, मेरी सहायता करेगा, इन इच्छाओं के कारण ही वह पुत्र से मिला हुआ चलता है । इसी प्रकार, पत्नी की इच्छायें अपने पति के प्रति, पति की इच्छायें अपनी पत्नी के प्रति होती हैं, इस तरह वे एक दूसरे के बन्धन में बंध जाते हैं। नौकर अपने मालिक के बन्धन में है, मालिक अपने नौकर के बन्धन में है। बड़ा अपने छोटे के बन्धन में है और छोटा बड़े के बन्धन में है । यह सब इच्छा के कारण ही होता है, इसलिये इच्छायें ही बन्धन हैं । सीता जी अग्नि परीक्षा में सफल हो गयीं तो रामचन्द्र जी हाथ जोड़कर खड़े हो गये। बोले- देवी! क्षमा करो। आपको बहुत कष्ट पहुँचा । चला, अब महल में चलो। लक्ष्मण ने भी हाथ जोड़े और भी सब लोगों ने हाथ जोड़े। भला सोचो कि सीता जी ने मृत्यु से भेंट कराने वाली अग्नि परीक्षा के बाद क्या अपने मन में इच्छा के भाव बनाये होंगे ? क्या सीता जी के मोह की प्रवृत्ति हो सकेगी? नहीं 419
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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