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________________ मिट्टी का चाक पर रखना शिष्यों को मोक्ष मार्ग पर स्थिर करने हेतु उन्हें एक योग्य अवस्था का प्राप्त करना है | कुम्भकार द्वारा चाक पर स्थित मिट्टी को कोमल हाथों से सम्हाल कर आकार देना गुरुओं द्वारा शिष्यों को दीक्षा देकर योग्य साधक / साधु बनाया जाना है | कच्चे कुम्भ को भट्टी की आग में तपाना बतलाता है कि गुरु शिष्य को दीक्षा दकर बाह्य एवं अंतरंग तपों में तपाकर शिष्य के समस्त विकारों एवं कर्मा का जलाकर दूर करते हैं। आत्मा के कर्म जले बिना यह आत्मा जन्म-मरण की परम्परा से छूट कर मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकती । संयम एवं तप क माध्यम स ही मोक्षमार्ग की साधना पूरी होती है। तप ही एक मात्र ऐसा साधन है जो आत्मा को तपाकर शुद्ध करता है। मोही प्राणी तप से तब तक ही डरता है जब तक कि उसे भेद विज्ञान नहीं हुआ। सुकुमाल को सरसों के दाने चुभत थे, पर जब उन्होंन दीक्षा ले ली, तपस्या में खड़े हो गय तो स्यारनी के खाने पर भी उन्हें कोई कष्ट नहीं हुआ। पर ध्यान रखना जब तक इच्छायें समाप्त नही होती, तब तक बन्धन नहीं मिटता अर्थात् जब तक इच्छायें रहेंगी, तब तक बन्धन रहेंगे | बगीचे में एक चिड़ीमार जाल फैलाय है | जाल के नीच थोड़ से चावल या गेहूँ के दाने डाल दिये हैं। अब चिड़िया आती है और उस जाल में फँस जाती है। देखने वाले दो चार लोग आपस में चर्चा करते हैं कि देखो, चिड़ीमार ने चिड़िया को फांस लिया। दूसरा बोला- नहीं चिड़ीमार ने चिड़िया को नहीं फांसा, जाल ने चिड़िया को फांसा है | तीसरा बोला-नहीं-नहीं चिड़िया ने स्वयं दाने चुगने की इच्छा की इसलिये स्वयं ही बंधन में बंध गई है | यदि इस आत्मा में से (हम और आप में स) केवल इच्छाओं को निकाल (417)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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