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कोई व्यक्ति (कुम्भकार) एक कुदाली लेकर आया और मेरे ऊपर जब कुदाली चलाई तो मेरा रोम-रोम काँप उठा, लेकिन सौभाग्य का ही विषय था कि उसने दोनों हाथों से मुझे एक बर्तन में रखा और सिर पर धारण कर लिया और अपने घर ले चला। मेरे आनन्द का पार नहीं रहा । पर घर पहुँचते ही उसने मुझे जमीन पर पटक दिया, मेरे प्राण-से निकल गये फिर उसने मुझमें पानी मिलाकर मुझे पैरों से कुचल - कुचलकर मुलायम बनाया, मेरे अन्दर से कंकड़-पत्थर बाहर निकाल फेके और मेरा लौंदा बनाकर मुझे चाक के बीच रखा तथा चाक को एक डंडे से घुमाया । चाक पर घूमते-घूमते मुझे चक्कर - सा आने लगा। कुम्भकार ने फिर अपने कोमल-कोमल हाथों से मुझे छू-छू कर एक घट का आकार दिया फिर छाँव में सुखाया और अन्त में अवे की आग में रखकर खूब तपाया । उसने भट्टी की अग्नि ने मेरी अन्तिम परीक्षा ली । वह अग्नि मेरे कण-कण में प्रवेश कर गई और मेरे अनावश्यक तत्त्वों को जलाकर पूर्ण शुद्ध बनाकर मुझे जल धारण करने के योग्य एवं गर्म व विभाव में परिणत जल को शीतल स्वभाव में लाने के योग्य बनाया । यह सब मेरी कठिन तपस्या का ही फल है, जो लोग मुझे अपने सिर के ऊपर रखकर चलते हैं ।
घड़े की कहानी सुनकर सेठ बहुत गहराई में चला गया और विचारने लगा यह तो मोक्ष मार्ग की कहानी है
बिना किसी मूल्य के मिट्टी का नीचे पड़ा रहना शिष्य का असंयमी अवस्था में रहने का संकेत है। मिट्टी का कुम्भकार से उठना यह शिष्य की अज्ञान अवस्था का द्योतक है। मिट्टी में जल का मिश्रण करना शिष्य गणों का त्याग या नियम आदि से सम्बन्ध कराना है। मिट्टी में से कंकड़, पत्थरों को निकालकर फेक देना शिष्य गणों को अवगुणों से दूर कर निर्दोष बनाने का उद्यम है ।
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