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उत्तम तप
धर्म का सातवाँ लक्षण है उत्तम तप । जिसके द्वारा किसी वस्तु को तपाकर शुद्ध किया जाता है, उसे तप कहते हैं । आचार्य उमास्वामी महाराज ने एक सूत्र दिया है 'इच्छा निराधः तपः' इच्छाओं का निरोध करना ही तप है । हम सभी जानते हैं कि इच्छायें अनन्त हैं, उनकी पूर्ति करना कभी संभव नहीं है । इच्छाओं की तासीर ही ऐसी है कि वे कभी पूरी नही होतीं । जीवन पूरा हो जाता है पर व्यक्ति अपनी इच्छाओं को पूरा नहीं कर पाता ।
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सामान्यतः इच्छाओं को संसार का कारण माना गया है, या कहें कि इच्छा का नाम ही संसार है । विनोबा जी ने एक सूत्र बनाया है कि मनुष्य - इच्छाएं ईश्वर । मनुष्य में से यदि इच्छायें निकल जायें तो वह ईश्वर है ।
हमारी तपस्या इच्छाओं को रोकने तथा कर्मों को क्षय करने के लिये होना चाहिये । कर्मक्षयार्थ तप्यते इति तपः । जिससे कर्म का क्षय हो, मन की चंचलता मिटे, मन के विकारी भाव दूर हों, इन्द्रियों पर विजय प्राप्त हो, वही सच्चा तप कहलाता है । रावण ने तपस्या कर अनेक विद्यायें सिद्ध कीं, परन्तु उद्देश्य खोटा था, इसलिये सारी तपस्या व्यर्थ चली गई । संसार में सैकड़ों लोग हैं, जो लौकिक सामग्री प्राप्त करने के लिए तपस्या करते हैं ।
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