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देने वाले हैं ही, तथा परलोक में भी इनका फल नरक निगाद ही है। मैंने भी जो दरिद्रता पाई है, वह भी तो पाप का ही फल है। अतः मैंने अपने पिता का छोड़कर, मोक्ष की इच्छा से उन्हीं गुरु के पास जैनेश्वरी दीक्षा ग्रहण कर ली। गुरु के प्रसाद से मैं शीघ्र ही सर्वशास्त्रों का पारगामी हो गया हूँ और मेरी बुद्धि भी विशुद्ध हो गई है | पाप और पुण्य का फल इस जीव का इस भव में तथा पर भव में भोगना ही पड़ता है | मुनिराज की इस अपनी दीक्षा क कारण को सुनकर देव अति प्रभावित हुये।
ये व्रत गृहस्थों क लिय अणुव्रत रूप होत हैं, और निरतिचार पालन करने पर नियम स स्वर्ग को प्राप्त कराते हैं तथा मुनियों के महाव्रत रूप होत हैं, जा स्वर्ग / मोक्ष को प्राप्त करात हैं।
सभी को अपनी शक्ति अनुसार इन व्रतों का पालन अवश्य करना चाहिये।