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3.
इनकी रक्षा के लिये हमें अपनी प्रत्येक क्रिया विवेक पूर्वक करनी चाहिये। जैसे आवश्यकतानुसार भूमि के अलावा अन्य क्षेत्र में जाने की सीमा कर लें। नाखून आदि से व्यर्थ जमीन न खोदें ।
5.
जल कायिक जीव उसे कहते हैं, जल ही जिनका शरीर है । इनकी रक्षा के लिये दिन में इतने जल से अधिक का उपयोग नहीं करेंगे इसकी सीमा कर लें । व्यर्थ में आवश्यकता से अधक जल प्रयोग में न लायें। नल खुला न छोड़ें। जल को छानकर ही उपयोग में लायें ।
अग्नि कायिक जीव उन्हें कहते हैं जिनका शरीर अग्नि का ही है । इनकी रक्षा के लिये अनावश्यक अग्नि न जलायें । कूड़ा-करकट के ढेरों में अग्नि न लगायें, बिजली खुली न छोड़ें |
4. वायु कायिक जीव वह हैं, जिनका शरीर ही वायु है। इनकी रक्षा के लिये पंखे खुले न छोड़ें, यदि बन सके तो पंखा न चलायें, जहाँ धीमी हवा से काम चल सकता हो तो फुल स्पीड पर पंखा न खोलें । यही कारण है कि जो उत्तम संयम के धारी हैं, वे कभी अपने हाथ से न तो पंखा चलाते हैं और न आदेश ही देते हैं ।
वनस्पति कायिक जीवों की संख्या 10 लाख है। यदि हम 50-100 सब्जियों का ही उपयोग करने की सीमा बना लं, तो शेष वनस्पतियों के उपयोग करने के दोष से बच सकते हैं ।
संयम के दूसरे भाग प्राणी संयम का पालन करने के लिये हम ध्यान रखें, हमारे माध्यम से किसी जीव को कष्ट न हो। हम अपनी
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