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जिससे लोक निन्दा होती है, हम राग कर अशुभ कर्मों का बन्धन करते हैं। मानव जीवन को सफल बनाने व अपने को अपने आप में देखने के लिये नेत्र इन्द्रिय की चंचलता रोकना आवश्यक है। इस नेत्र इन्द्रिय के वशीभूत होकर ही पतंगा अपने प्राण गँवा देता है।
पाँचवी कर्ण इन्द्रिय के अनावश्यक विषय हैं-कुमार्ग पर ले जाने वाले सिनेमा के गीत, होली आदि के राग भरे गीत, राग-द्वेष को पुष्ट करने वाली कथायें आदि। हरिण कर्ण इन्द्रिय के कारण ही अपने प्राण गँवा देता है।
यदि हम वास्तव में संयमी बनना चाहते हैं तो इन अनावश्यक विषयों का त्याग कर दें। इससे फिजूल खर्चों से भी बच जायेंगे और धर्म करने के लिये समय भी मिल जायेगा। यह शरीर तो एक दगा बाज मित्र है | पता नहीं किस दिन साथ छोड़ दे | यदि इस मानव पर्याय को सफल बनाना है, इस अशुचि शरीर को पवित्र करना है. कषायों पर विजय प्राप्त करना है, मोक्ष मार्ग प्रशस्त करना है, तो शक्ति के अनुसार संयम धारण करें | जो अपने हिताहित के विचार में कुशल, साहसी और अतीन्द्रिय सुख के अभिलाषी हैं, उन्हें प्रमाद को छोड़कर इस संयम धर्म के विषय में अतिशय आदर करना चाहिये |
संयम के प्रथम भाग इन्द्रिय-संयम के बाद आता है प्राणी संयम । 'प्राण' शब्द का अर्थ है-जिसके बिना जीवित न रह सकें, उसे प्राण कहते हैं। प्राणी संयम वह है, जहाँ हमारी मन, वचन, काय की किसी भी प्रवृत्ति से पाँच इन्द्रिय, तीन बल, आयु और श्वासोच्छवास इन दश प्राणों में से कोई भी एक प्राण किसी प्रकार बाधित न हो। एकेन्द्रिय जीवों के पाँच भेद हैं - 1. पृथ्वी कायिक जीव वह कहलाते हैं जिनका पृथ्वी ही शरीर है।
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