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प्रत्येक क्रिया को विवेकपूर्ण करें, जैस नाखून आदि से व्यर्थ जमीन न खोदें, व्यर्थ आवश्यकता से अधिक जल का प्रयोग न करें, पंखा, नल, लाईट, आदि व्यर्थ खुले न छोड़ें, जल को छानकर उपयोग में लायें, कूड़ा कर्कट के ढेरों में अग्नि न लगायें, सब्जियाँ खाने की संख्या निश्चित कर लें कि प्रतिदिन इतनी से अधिक सब्जियाँ नहीं खायेंगे ।
हम पशु पक्षियों कां बांध देते हैं, पिंजरे में बन्द कर देते हैं, शक्ति से अधिक बोझा लाद देते हैं, समय पर खाना नहीं देते, दूसरों से कटु वचन बोलकर प्राणियों का दिल दुखाते रहते हैं, रात्रि में भोजन करते हैं, बिना छना जल पीते हैं, काम मे लाते हैं, चलते समय नीचे देखकर नहीं चलते इत्यादि व्यर्थ क्रियाओं के कारण प्राणियों को कष्ट पहुँचाते रहते हैं। अपने तथा दूसरे जीवों के हित के लिये हमें इन क्रियाओं को अवश्य ही छोड़ देना चाहिये ।
अपने आत्म स्वरूप को अच्छे प्रकार से समझकर शक्ति अनुसार संयम धारण करो । जिसके जीवन में संयम रूपी ब्रेक नहीं होता, वह अपनी मंजिल पर नहीं पहुँच सकता ।
एक नगर में एक बड़ा साहूकार रहता था । एक मोटर कंपनी का एजेन्ट इस साहूकार के पास जाता है और कहता है-सेठ जी ! हमारी कंपनी में बहुत अच्छी कारें बनती हैं आप बहुत बड़े साहूकार हैं, कृपया हमारी कार खरीद लीजिये । साहूकार कहने लगा कि पहले कार की कीमत और गुण बतायें। एजेन्ट कहता है कि हमारी कार पहाड़ी इलाकों में भी ठीक से चलती है, पेट्रोल कम खाती है, सीट भी बड़ी सुंदर हैं और देखने में भी बड़ी अच्छी है ।
साहूकार कहता है कि ये सब तो ठीक है किन्तु यह बताओ कि इसके ब्रेक भी ठीक हैं कि नहीं ? कार वाला कहता है कि ब्रेक कुछ
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