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________________ प्रकार हमें अपनी आत्मा की भी चिन्ता करना चाहिए | ये राग-द्वेष-मोह आत्मा के गुणों को जलाने वाले इस जीव के शत्रु हैं। अतः इनको छोड़कर जीवन में संयम का धारण करो | इष्टोपदेश ग्रन्थ म पूज्यपाद महाराज ने लिखा है - वध्यते मुच्यते जीव निर्मम स मम क्रमात | तस्मात्सर्व प्रयत्नेन निर्मम इति चिन्तयेत ।। पर द्रव्य में 'यह मेरा है', यह राग-बुद्धि बन्ध के लिये कारण है, तथा पर द्रव्य में 'यह मेरा नहीं है', ऐसी विराग-बुद्धि ही मुक्ति के लिये कारण है। इसलिये सर्व प्रयत्न करक जीवन में वैराग्य को धारण करा | संयम के बिना हम अपना ही अहित कर रहे हैं। जब भी हमारा कल्याण होगा, संयम धारण करने के बाद ही होगा। जितने भी जीव आज तक सिद्ध भगवान् हुये हैं व संयम का जीवन में धारण करने के बाद ही हुये हैं और आगे जा भी सिद्ध होंगे, वे जीवन में संयम को धारण करने के बाद ही होंगे। अतः जितनी जल्दी संयम धारण कर सको, उतना ही अच्छा है | संयम से ही जीवन में समता आती है। उत्तम संयम के धारी मुनिराज की दृष्टि निंदक व प्रशंसक पर एक रहती है, तथा वे देते हैं आशीर्वाद दोनों को समता भाव से | महामुनि यशाधर उपसर्ग दूर होने पर, ध्यान टूटने के उपरान्त देखते हैं, सामने बैठी हुई रानी चेलना व राजा श्रेणिक को | एक उपसर्ग करने वाला व एक उपसर्ग दूर करने वाली। एक सर्प डालने वाला और एक सर्प को यथोचित प्रयत्न करके निकालने वाली । किन्तु, इस ओर दृष्टि न करके देते हैं आशीर्वाद दोनों का साम्यभाव से, करुणा भाव से | (396
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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