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बारे में नहीं सोचते हैं ।
एक दृष्टांत है - एक राजा और मंत्री घूमने लिये गय घूमते-घूमते राजा को प्यास लग आई । राजा ने मंत्री से कहा- मंत्री जी, जाओ, कहीं से पानी का इन्तजाम करो । मंत्री जी पानी लेने के लिये इधर-उधर जाते हैं पर उन्हें कहीं पानी दिखाई नहीं दिया । रास्ते में उन्हें एक लकड़हारा मिला। वह लकड़ी का गट्ठा लेकर आ रहा था। मंत्री जी ने पूछा- भाई! आपने कहीं पानी देखा है ? लकड़हारा जंगल का था । उसने कहा देखा है। मंत्री जी बोले भाई ! राजा को प्यास लगी है, पानी लेकर आओ। उसने लड़की का गट्ठा नीचे रखा और पानी लेने चला गया । लकड़हारा कुछ समय बाद अच्छा ठंडा पानी लाया और राजा को पिलाया। राजा पानी पीकर खुश हो गया और मंत्री से बोला मंत्री जी इस लकड़हारे को सारा चन्दन का बाग दे दो । मंत्री ने सारा चंदन का बाग लकड़हारे को सौंप दिया ।
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राजा और मंत्री घूमकर अपने महल में चले जाते हैं । लकड़हारे को चन्दन के वृक्षों की कीमत का कुछ पता न था । वह प्रतिदिन दो-चार वृक्षों को काटता और उनका कोयला बनाकर । दो-चार आने में बेच आता । इस प्रकार सालों गुजर गये । एक दिन राजा मंत्री से कहते हैं कि उस लकड़हारे को जाकर देखो कि वह कितना धनवान् हो गया । मंत्री जी जाकर देखते हैं जंगल में सिर्फ बीस-तीस चन्दन के वृक्ष बचे हैं और वह लकड़हारा उसी टूटी हुई चारपाई और झोपड़ी में लेटा है। मंत्री जी आवाज लगाते हैं, ह लकड़हारे ! तुझे मैंने इतना कीमती चन्दन का बाग दिया था तू आज तक फिर भी गरीब है? कहाँ गये इतने सारे वृक्ष ? वह बोला जैसे प्रतिदिन लकड़ी के कोयले बनाकर बेचता था और पेट भरता था, वैसा ही उन
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