________________
वृक्षों का किया। मंत्री जी बोले-अरे! सारा चन्दन का वृक्ष कोयला बनाकर नष्ट कर दिया, आज तक तूने उसकी कीमत नहीं पहचानी | जा एक छोटी-सी लकड़ी लेकर आ । लकड़हारा लकड़ी लेकर आता है। मंत्री जी बोले- जाओ इसे पंसारी के पास ले जाओ। वह जाता है, पंसारी ने उसे उस लकड़ी के बदले में चार आने दिये । वह सोच
पड़ गया, इतनी सी लकड़ी के चार आने । पंसारी ने सोचा इसे चार आने कम लग रहे हैं, उसने कहा अच्छा एक रुपया ले लो । लकड़हारा मस्तक पर हाथ रखकर रोने लगा और कहने लगा मुझे इतना कीमती चन्दन का बाग मिला था जिसे मैंन कोयला बना-बनाकर खत्म कर दिया । हे मंत्री जी! मैं अब क्या करूँ ? मंत्री जी कहते हैंभाई अभी भी तेरे पास चन्दन के जितने वृक्ष हैं, उनकी कीमत पहचानोगे, तो धनी हो जाओगे ।
इसी प्रकार हम सब ने भी पूर्व में भारी पुण्य किया था, जिससे यह मनुष्य - पर्याय और जैन कुल मिला है । जिस प्रकार वह चन्दन के वृक्षों की कीमत नहीं जानता था, उसी प्रकार हम भी इस मनुष्य भव की कीमत नहीं जानते । जैसे वह चंदन के वृक्षों को कोयले बना-बनाकर फूंक रहा था, वैसे ही हम भी इस नरदेह को विषय-भोगों में फूंक रहे हैं, जैसे मंत्री ने उसे उस बाग की कीमत बताई थी, उसी प्रकार कभी-कभी गुरु आते हैं और कहते हैं, कि भाई! आयु का कुछ भरोसा नहीं, कब मृत्यु आ जाये, इसलिये जितना समय मिला है, हमें आत्मकल्याण में लगाना चाहिये, जिससे कुछ ही समय में तुम आत्मरूपी वैभव के धनी बन जाओगे | इन विषय-भोगों से आज तक किसी को शान्ति नहीं मिली। अपने आत्म स्वरूप की सच्ची पहचान करना ही शान्ति प्राप्ति का उपाय है। स्वपर का भेद विज्ञान हुये बिना शान्ति की प्राप्ति नहीं हो सकती ।
390