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प्रस्तावना
पर्युषण पर्व साल में तीन बार आता है - माघ, चैत्र और भाद्रपद में, परन्तु प्रचलित रूप में इसे केवल भाद्रपद माह में विशेष रूप से मनाते हैं । यह पर्व भाद्रपद सुदी पंचमी में भाद्रपद पूर्णिमा तक मनाया जाता है । इसका समापन अश्विनी कृष्णा प्रतिपदा को क्षमावाणी दिवस के रूप में किया जाता है । उत्सर्पिणी अथवा अवसर्पिणी काल के अन्त में होने वाले प्रलय के समय ज्येष्ठ वदी दशमी से 49 दिन तक अग्नि, पत्थर तेजाब आदि की वर्षा 7-7 दिन तक होती है, जिससे एक योजन गहराई तक पृथ्वी नष्ट हो जाती है । फिर 49 दिन तक दूध, पानी, अमृत आदि की 7 - 7 दिन तक वर्षा होती है, जिससे यह पृथ्वी पुनः अस्तित्व में आती है। सुवृष्टि में देवों द्वारा जो जोड़े विजयार्द्ध पर्वत की गुफाओं में छिपाये जाते हैं, वे सभी वापस आकर पृथ्वी पर बसते हैं। यह प्रलयकाल केवल भरत एवं ऐरावत क्षेत्र में ही आता है, अन्य जगह नहीं। इस प्रकार सृष्टि की रचना भाद्रपद सुदी पंचमी से पुनः होती है । इस दृष्टि से भाद्रपद माह के दशलक्षण पर्व का विशेष महत्त्व है । उत्तम क्षमा, उत्तम मार्दव, उत्तम आर्जव, उत्तम शौच, उत्तम सत्य, उत्तम संयम, उत्तम तप, उत्तम त्याग उत्तम आकिंचन्य और उत्तम ब्रह्मचर्य, ये धर्म के दशलक्षण हैं । पर्युषण पर्व में प्रत्येक दिन एक धर्म की भावना भायी जाती है । इस प्रकार दस दिन तक यह पर्व मनाया जाता है। धर्म के दस लक्षण वास्तव में आत्मा के ही निजभाव हैं, जो क्रोधादि से ढक रहे हैं ।
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