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________________ स्वभाव प्रकट करने के लिये सर्वप्रथम उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव, शौच, सत्य, संयम, तप, त्याग, आकिंचन्य और ब्रह्मचर्य रूपी व्यवहार धर्म के सोपान पर चढ़कर साथ ही अपने पास रत्नत्रय की निधि लेकर चलने वाला राही उस निश्चय धर्म को प्राप्त करता है । व्यवहार धर्म का पालन करता हुआ श्रावक अपने जीवन में आगे बढ़कर यति धर्म का व्यवहार रूप में पालन करता है और सतत् अभ्यास करता हुआ निश्चय धर्म को प्राप्त कर लेता है । व्यवहार धर्म को जानने और मानने के लिये ब्र0 सुरेन्द्र कुमार जी ने इस ग्रन्थ में दशलक्षण धर्म का संकलन एवं समायोजन किया है, जिसमें धर्म के दशलक्षण एवं उनका पालन करने वालों ने अपने जीवन में क्या फल प्राप्त किया है उनकी विभिन्न कथाएँ संकलित की हैं, जो वास्तव में एक दुरूह कठिन कार्य है । जिसे आप अपने गृहस्थ जीवन में रहते हुये पूर्ण कर रहे हैं। जो वास्तव में एक सराहनीय है । आपक द्वारा "रत्नत्रय" नाम से तीन भाग जिनमें करीब एक हजार आठ कहानियों के माध्यम से सम्यदर्शन, सम्यग्ज्ञान व सम्यक् चारित्र का वर्णन बहुत ही सरल भाषा में किया गया है, प्रकाशित हो चुके हैं। मैं उनके इस पुनीत कार्य की सराहना करता हूँ । ब्रह्मचारी जी को मेरा बहुत - बहुत आशीर्वाद है । इस ग्रन्थ का प्रकाशन हमारे पावन वर्षा योग 2013 के अवसर पर दि० जैन समाज शकरपुर दिल्ली द्वारा किया जा रहा है । दिनांक 17 नवम्बर 2013 ii - आचार्य विशद सागर (जैन मन्दिर शकरपुर, नई दिल्ली)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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