________________
सकूँ | तब देवता ने तथास्तु कह दिया। एक दिन बहुत तज आँधी और बरसात चालू हा गई। परन्तु उसकी गर्दन लम्बी होने से उसे कहीं भी छिपने की जगह नहीं मिली। तब उसने एक गीदड़ की खोल में अपनी गर्दन घुसा दी। गीदड़ भूखे थे इसलिये वे उसे खा गये | इसी तरह यह मनुष्य पंचेन्द्रिय विषयों के वशीभूत होकर, उनमें लीन होने से, संयम धारण करने में प्रमादी, होकर आत्मा का हित नहीं कर पाता और अपने अत्यन्त दुर्लभ मनुष्य जीवन को, भोगों को भोगने में ही समाप्त कर देता है | पं. भूधर दास जी ने लिखा है
भोग बुरे भव रोग बढ़ावें, बैरी हैं जग जी के, नीरस होंय विपाक समय अति, सवत लागे नीक | बज्र, अगनि, विष से, विषधर से हैं अधिके दुःखदाई,
धर्म रतन के चोर चपल अति, दुर्गति पन्थ सहाई।। ये पंचेन्द्रिय के विषय-भोग, संसारी जीवों का महान अहित करने वाले महाशत्रु हैं। जिस प्रकार खुजली को खुजाते समय बड़ा आनन्द आता है, परन्तु खुजा लेने के बाद जलन होती है, जिससे उसे बहुत कष्ट होता है | उसी प्रकार ये भोग भागत समय तो जीव को अच्छे लगते हैं, परन्तु भोग लने के बाद शक्ति क्षीण हो जाने पर बहुत नीरस प्रतीत हाते हैं। बज्र, अग्नि, विष या विषधर सर्प से भी अधिक दुःख ये विषय-भाग संसारी जीवों को दिया करते हैं | क्योंकि बज्र, अग्नि, विष आदि तो जीव के इस भौतिक शरीर का ही विनाश कर सकते हैं, परन्तु ये विषय-भाग जीव की आध्यात्मिक सम्पत्ति, धर्म-निधि को चुरा लेत हैं और जीव का नरक, तिर्यंच गति के मार्ग पर पहुँचा देते हैं। माह उदय यह जीव अज्ञानी, भोग भले करि जाने,
(357)