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अब पर घर रूप पर भावों को, शीघ्र ही त्यागकर संयम-धर्म को धारण करो, जिससे संसार की परम्परा समाप्त हो जावेगी ।
काल अनादि है, जीव अनादि है । जीव का कभी नाश होने वाला नहीं है। जब तक यह जीव स्व और पर के ज्ञान पूर्वक संयम को धारण नहीं करेगा, तब तक संसार के परिभ्रमण का चक्कर बन्द नहीं हो सकता। संत - पुरुषों ने पंचेन्द्रिय के क्षणिक विषय सुख एवं वैभव को त्याग कर, अनन्त सुख से युक्त आत्मीय सुख को प्राप्त करने के लिये बाह्य और अभ्यन्तर परिग्रह रूपी पिशाच को ठुकराकर संयम धारण करके तप द्वारा कर्मरूपी शत्रुओं का नाश करके, मोक्ष सुख को प्राप्त किया ।
जब तक मनुष्य का उपयोग विषय कषाय में ही लगा रहेगा, तब तक उसको कभी भी आत्म सुख की प्राप्ति नहीं हो सकती। क्योंकि, ये इन्द्रियाँ अपने-अपने विषयों की ओर आत्मा को आकृष्ट करके पथ भ्रष्ट कर देती हैं, मोहित करके विवेक शून्य बना देती हैं। एक प्रमादी ऊँट राजस्थान में एक स्थान पर बैठकर अपना पेट भरना चाहता था। उसने एक देवता से प्रार्थना की, कि मुझे बैठे-बैठे खाना मिल जाये । देवता ने कहा अगर तेरी गर्दन और लम्बी हो जाये तो तेरा पेट भर सकता है। एक काव्य है
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उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः ।
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः । ।
क्योंकि, बिना उद्यम के कार्य की सिद्धि कभी नहीं हो सकती है । प्रमादी होने से इस जीव को कार्य की सिद्धि नहीं हो सकती है । इसलिये आत्महित के लिये उद्यम करना अत्यन्त आवश्यक है। ऊँट बोला- मेरी गर्दन इतनी लम्बी कर दो कि मैं यहाँ से चारों तरफ चर
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