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एक साथ नहिं होत सयाने, विषय-भोग अरु मोक्षहिं जाने ||
अर्थात् एक राहगीर एक बार में एक ही रास्ता चल सकेगा, एक सुई एक समय में एक ही कपड़ा सिल सकेगी, इसी तरह हे बुद्धिमान मानव | यह कभी नहीं हो सकता कि हम विषय-भोगों में भी फँसे रहें और मोक्ष भी चले जायें | दो में से कोई एक ही हा सकेगा। क्योंकि विषय/भोग संसार का मार्ग है, उससे मोक्ष कैस मिलेगा? वह तो मिलेगा मोक्षमार्ग पर चलन से, सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यकचारित्र को धारण करने से | आचार्य कहते हैं-अपार दुःखों से भरे हुये संसार को छोड़ने पर यदि अनंत सुखों का सागर 'मोक्ष' प्राप्त हाता है, तो ऐसे संसार को शीघ्र ही छोड़ देना चाहिये ।
भ्रमण करते-करते, दुःख उठाते-उठाते अथवा उपद श सुनते-सुनते, बहुत समय बीत चुका, अब दुःखों से सदा के लिये पिंड छुड़ाने के लिये, मोक्ष सुख को प्राप्त करन के लिय, संयम को जीवन में धारण करो। जिनेन्द्र भगवान ने कहा है-जो जीव सारे पर द्रव्यों से माह को छोड़कर, संसार, शरीर और भोगों से उदासीन होकर, संयम को अपने जीवन में अंगीकार करके, तप के माध्यम से शुद्धात्मा की साधना करता है, उसका जीवन सार्थक हो जाता है। अतः हे भव्य । आत्म तत्त्व को अच्छे प्रकार से समझकर संयम-तप को धारण करो।
संयम-धर्म पाप-मलपुंज को धोकर पवित्र बना देता है। पर-पदार्थों में आसक्त असंयमी व्यक्ति पर-पदार्थों को मोहवश अपने मानता चला आ रहा है, परन्तु अपने निज आत्म तत्त्व का भान नहीं होने के कारण, अज्ञानता वश संसार की 84 लाख योनियों में भ्रमण करता हुआ, दुःखी होता चला आ रहा है । आचार्य कहते हैं कि
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